कुछ गैर जरुरी सा,
अफ़साना ये दिल का फिजूल था.
तेरे रुखसार की आहटे,
सलवटों में सिमट गयी,
कुछ पल को.
चुभती सी आह एक ,
बाकि रह गयी.
अनकही सी बात एक,
बाकि रह गयी.
ना मुकम्मल हुआ,
ना खत्म हुआ.
थम सा गया,
सब एक लम्हे में "
"चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते हैं. बंद आँखों की बातो को,अल्हड़ से इरादों को, कोरे कागज पर उतारेंगे अंतर्मन को थामकर,बाते उसकी जानेंगे चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते है"
ये बिखरी बातें,बेचैन सी रातें।
यूँ चुप-चुप सी,अनसुनी आहटें।
दिल की बातें कहने को,
भावों की धार में बहने को,
में हर-पल तत्पर रहता हूँ;
बस तेरी बाते कहता हूँ।
जाने कैसा उन्माद है ये,
जो मुझमे उठता रहता है।
तुझे कह दूँ की चुप रह जाऊँ,
इस बोझ को कैसे सह पाऊँ।
बिन कहे ही तुम सब सुन लो न,
आँखों को मेरी पढ़ लो न।
हर पल तेरे ख्वाब सजाता हूँ,
रूठ कर तुझसे मैं;
खुद ही खुद को मनाता हूँ।
कभी आकर तुम मना लो न,
मेरे बिखरे ख्वाब सजा दो न।
बेरंग सी है जिंदगी ये,
इसे प्यार का रंग लगा दो न।
- अविकाव्य
हाँ मैं नासमझ हूँ,
बचपन की में ललक हूँ।
मैं तो कच्ची मिटटी हूँ,
बेगाने अकार को निकली हूँ।
हर रंग में ढल जाती हूँ,हर नब्ज में मिल जाती हूँ।अव्यवस्थित सा मैं साज हूँ,असंगठित आगाज हूँ।मैं खुद से बाते करती हूँबेहमतलब में मै हँसती हूँ।मुझे हर को सच्चा लगता है,अंजान भी अच्छा लगता हैहर चिंता से आजाद हूँ मैंहाँ अभी तो बस शुरुआत हूँ मैं।
तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...