आधुनिक विद्वान भारत को आम लोगो की नजर से देखना समझना नहीं चाहते। वो तो अपनी ही कृत्रिम दुनिया में रहते हैं। उनको इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता कि भारत के आम नर-नारियों का दूसरे लोगो से,सृष्टि से या दूसरे जीवो से क्या सम्बन्ध है? उनके लिये पश्चिमी मानदंडो पर खरा उतर जाना ही अधिक आवश्यक है।
वास्तव में आम आदमी के जीवन में जाने अनजाने कितना पश्चिमीकरण हुआ है,हुआ भी है या नहीं ऐसे सवालो पर सार्वजनिक जीवन में चर्चा सामान्यतः नहीं होती। जो लोग भी सार्वजनिक जीवन में हैं, उनको आम लोगो की वास्तविक स्थिति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। जिन्हें जानकारी है वो सार्वजनिक जीवन के विमर्श में भाग नहीं लेते और आम लोगो के पक्ष का प्रतिनिधित्व करने नहीं आते। आधुनिक भारत के पढ़े लिखे लोगो को लगता है कि हमारे देश के साधारण लोग तो आलसी हैं। अंग्रेजो ने जो जो कहा और दोहराया कि "तुम्हारे ग्रंथो में ऐसा लिखा है", यह पढ़े लिखे भारतियों के मन में बस गया। जैसे अंग्रेजो ने जानबुझकर यह मिथक गढ़ा कि हजारो बरस से हमारे यहाँ दरिद्रता है , वर्षो से हमारे यहाँ छुआछुत कायम है। ऐसी मान्यताओ का कोई ऐतिहासिक आधार नही है। ऐसे मिथक अंग्रेजो द्वारा अपने राज्य को वैधता देने के लिए शोध के नाम पर गढे गए।
परन्तु मानसिक रूप से बीमार इन लोगो ने इसे बिना परीक्षण किये स्वीकार कर लिया। किसी ने ये पूछना जरुरी नही समझा की इन बातों के ऐतिहासिक आधार कहाँ है? पूछने पर कुछ कुतर्की कहते हैं की मनुस्मृति में है या कहीं और है। ये भी नही कहते की मनुस्मृति में क्या है?? इसके अतिरिक्त अन्य कौन कौन सी स्मृतियाँ इन स्मृतियों का आपस में क्या संबंध है इनका तात्कालीन समाज से क्या सम्बन्ध था? इनका समाज पर क्या प्रभाव था? था भी या नहीं ? ऐसे प्रश्नों को दरकिनार करना आजकल भारत में बोद्धिक फैशन सा बन गया था और इसके निर्माण में साम्राज्यवादियों ने बहुत मेहनत की थी।
राबर्ट क्लाईव के ज़माने में ही अंग्रेजो को समझ आ गया था की भारतियों को कुछ भी तय करने में देर लगती है।भारतीय लोग स्वाभाव से योजनाबद्ध नहीं होते। विरोधियो द्वारा कुछ भी अचानक करने पर वो लड़खड़ा जाते हैं।
भारत के लोग हवा का रुख देखकर अपनी रणनिति बादल लेते है। अगर परिस्थितियां बदली तो भारत के पढ़े लिखे लोग आसानी से बदल जाते हैं। मध्यकाल में ये पढ़े लिखे लोग आसानी से अरबी-फारसी में सूफियों की भाषा और इस्लामिक प्रगतिशीलता के गीत गाने लगे। यही कार्य उन्होंने अंग्रेजी राज में भी किया।
और अंग्रेजो की देखा देखी भारत की सभ्यता और संस्कृति की कठोर आलोचना करना पढ़े लिखे भारतियों के बीच लोकप्रिय हो गया।
क्रमशः ........................
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