भावनाओ की घनी घटाएं
फैली हुई हैं मन के छितिज पर,
अनुराग भी है और द्वेष भी है
कोलाहल भी है और निर्वेद भी है
चाह भी है और त्याग भी है
आकांक्षा भी है और संतुष्टि भी है
वात्सल्य भी है और घृणा भी
संयम भी है और अधीरता भी
आशा भी है और निराशा भी
उत्साह ही है और आलस्य् भी
भय भी है और निडरता भी
जड़ता भी है और प्रवाह भी
तरह-तरह की भावनाओ का ज्वार
पल-पल उठता और गिरता रहता है
किसी के लिए प्रेम उद्दीपित होता है
तो किसी के लिए क्रोध आवेशित होता है
किसी के इक्षा रखता हूँ
तो किसी से दूर भागता हूँ
कुछ करने को तत्पर रहता हूँ हर-पल
तो कुछ को टालता हूँ जब-तब
चंचल मन यहाँ वहा विचरता रहता है।
इसमें हर क्षण नया भाव उभरता रहता है।
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