मै राजनीति हूँ।
हाँ स्वार्थियों से घिरी सी हूँ
कोई मुझे कीचड़ कहता है
हर कोई नफरत करता है
हाँ कभी कोई आता है
हाँ स्वार्थियों से घिरी सी हूँ
कोई मुझे कीचड़ कहता है
हर कोई नफरत करता है
हाँ कभी कोई आता है
ईमानदारी का
डंका बजता है
उम्मीदे नई जगाता है
फिर रंग नय दिखाता है
इस भूलभुलैया में खोकर
वो भी गुम हो जाता है
वो भी खुद को छोड़कर
मक्कारी और धोखेबाजी
को अपनाता है
ईमानदारी क्या अवगुण है
क्यों ये मुझसे दूर है
मै धूर्तो को दासी हूँ।
उन्हें ही सर पे बिठाती हूँ।
फिर भी उम्मीद में बैठी हूँ।
दबी सी जुबान में कहती हूँ।
बचा लो मेरे दामन को
सतगुणो से सींचकर
सजा तो तुम इस आँगन को
डंका बजता है
उम्मीदे नई जगाता है
फिर रंग नय दिखाता है
इस भूलभुलैया में खोकर
वो भी गुम हो जाता है
वो भी खुद को छोड़कर
मक्कारी और धोखेबाजी
को अपनाता है
ईमानदारी क्या अवगुण है
क्यों ये मुझसे दूर है
मै धूर्तो को दासी हूँ।
उन्हें ही सर पे बिठाती हूँ।
फिर भी उम्मीद में बैठी हूँ।
दबी सी जुबान में कहती हूँ।
बचा लो मेरे दामन को
सतगुणो से सींचकर
सजा तो तुम इस आँगन को
behtarin kavita
जवाब देंहटाएंsukriya srishti :)
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