ये बिखरी बातें,बेचैन सी रातें।
यूँ चुप-चुप सी,अनसुनी आहटें।
दिल की बातें कहने को,
भावों की धार में बहने को,
में हर-पल तत्पर रहता हूँ;
बस तेरी बाते कहता हूँ।
जाने कैसा उन्माद है ये,
जो मुझमे उठता रहता है।
तुझे कह दूँ की चुप रह जाऊँ,
इस बोझ को कैसे सह पाऊँ।
बिन कहे ही तुम सब सुन लो न,
आँखों को मेरी पढ़ लो न।
हर पल तेरे ख्वाब सजाता हूँ,
रूठ कर तुझसे मैं;
खुद ही खुद को मनाता हूँ।
कभी आकर तुम मना लो न,
मेरे बिखरे ख्वाब सजा दो न।
बेरंग सी है जिंदगी ये,
इसे प्यार का रंग लगा दो न।
- अविकाव्य
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