उषा उदित हुई स्वछंद
टूटे निद्रा के उपबंध
हुई उद्दीपित नवल उमंग संरचित हुए नव प्रबन्ध्
है वातावरण शांतचित्त सा
होने को है आगमन प्रदीप का मुख दर्पित हो प्रियतम का
गुजरे दिवस स्वर्णिम सा
उत्साह को अग्रिम कर
ठिठक को विष्मित कर
उद्धम की मजबूत जड़ो से
निर्मित हो वृक्ष ठोस धड़ो से
सृजित हो शाखाये सआधार
हर पात उपजे नवाचार।
गुजरे दिवस स्वर्णिम सा
उत्साह को अग्रिम कर
ठिठक को विष्मित कर
उद्धम की मजबूत जड़ो से
निर्मित हो वृक्ष ठोस धड़ो से
सृजित हो शाखाये सआधार
हर पात उपजे नवाचार।
शब्दार्थ-
उषा- सूरज उगने से पहले का समय
उपबंध - बंधन
उद्दीपित- उत्त्पन्न होना संरचित - बनना/रचना होना प्रदीप - रौशनी देने वाला/सूरज
विष्मित - भ्रमित करना उद्धम् - नई चीज बनाना/स्थापित करना पात - पत्ता
नवाचार- नई विचारधारा।
उषा- सूरज उगने से पहले का समय
उपबंध - बंधन
उद्दीपित- उत्त्पन्न होना संरचित - बनना/रचना होना प्रदीप - रौशनी देने वाला/सूरज
विष्मित - भ्रमित करना उद्धम् - नई चीज बनाना/स्थापित करना पात - पत्ता
नवाचार- नई विचारधारा।
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