वो शख्स है अलबेला से
कई रंगो को लपेटे हुए
कभी मायूसी की वो चादर है
कभी उजला सा वो आँचल है
कभी उसे बदहवास पाया
कभी जाता हुए साज पाया
किसी ने पढ़ा उसकी आँखों को
किसी ने सुना उसको बातो को
बस एक आयाम जो धुंधला था
वो जो अंतर्मन पर फैला था
कभी नदिया सा वाचाल था
कभी सागर सा वो शांत था
वो हरपल मुश्कुराता था
खुल के जज्बात लुटाता था
बस छुपा रखा था उन अश्को को
जो तनहाई में बहाता था
हाँ लोगो का कहना है
बड़ी रंगीन उसकी दुनिया है
ये सबकुछ भ्रम का जाल है
उसके मन के श्वेत पत्र से
हरकोई अंजान है।
कई रंगो को लपेटे हुए
कभी मायूसी की वो चादर है
कभी उजला सा वो आँचल है
कभी उसे बदहवास पाया
कभी जाता हुए साज पाया
किसी ने पढ़ा उसकी आँखों को
किसी ने सुना उसको बातो को
बस एक आयाम जो धुंधला था
वो जो अंतर्मन पर फैला था
कभी नदिया सा वाचाल था
कभी सागर सा वो शांत था
वो हरपल मुश्कुराता था
खुल के जज्बात लुटाता था
बस छुपा रखा था उन अश्को को
जो तनहाई में बहाता था
हाँ लोगो का कहना है
बड़ी रंगीन उसकी दुनिया है
ये सबकुछ भ्रम का जाल है
उसके मन के श्वेत पत्र से
हरकोई अंजान है।
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