"क्या मै तुम्हे जानता हूँ ?
रोज तुम्हे सोचता हूँ,
नई परते खुलती है,
नया सा तुम्हे पाता हूँ ।
खुद से सवाल करता हूँ,
अब क्या तुम्हे मानता हु?
क्या में तुम्हे जानता हूँ?
या अब भी अंजान सा हु?
कितने तुम्हारे रंग है?
कैसे तुम्हारे ढंग है?
तुम अच्छी हो या बुरी?
तुम खोटी हो या खरी?
क्या वजह दूँ तुम्हारे साथ को?
कहा जगह दूँ तुम्हारे नाम को?
अब ये कैसे तय करू?
कैसे पहचानू तुम्हे?
कितनी तुम गहरी हो ?
तुम कहा पर ठहरी हो ?
मै खुद से सवाल करता हूँ।
तुम्हे रोज में पढता हूँ
जाने कितनी उलझी हो
हाँ अभी तुम धुंधली हो"
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