पतझड़ के सुर्ख मौसम में फूल क्यों खिल रहे हैं
शायद तुम आये हो।
शायद तुम आये हो।
सूने सूने मन के आंगन में ये खिलखिलाहट कैसी
शायद तुम आये हो।
गुमसुम सी इस सुबह में ये कलरव कैसा
शायद तुम आये हो।
वीरान से इन रास्तो पर ये बहार कैसी
शायद तुम आये हो।
धुल खाते दिल के दर्पण में ये चेहरा कैसे
शायद तुम आये हो।
गर्म फिजाओं के घेरे में ये ताजगी कैसी
शायद तुम आये हो।
शायद तुम आये हो।
निर्वेद की इस बेला में खनखनाहट कैसी
शायद तुम आये हो।
बेजान से इस बुत में धड़कन कैसे
शायद तुम आये हो।
शायद तुम आये हो।
आज फिर चुन रहा हूँ मोती चाहत के
शायद तुम आये हो।
थमी थमी सी इक्षाएँ फिर से जीने लगी हैं
शायद तुम आये हो।
शायद तुम आये हो।
हाँ रुकने को थी सांसें बेमतलब सा था जीवन
आज फिर आधार मिला है
शायद तुम आये हो
शायद तुम आये हो
शायद तुम आये हो।
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