तीक्ष्ण शब्द,
बरस पड़े थे,
बरबस।
आँखों में भी,
मुखातिब हो रही थी,
अनमनी और,
बेरुखी सी।
न जाने क्यों,
ऐसा रुख,
इख़्तियार किया था,
तुमने।
इतनी झुंझलाहट,
इतने बेरुखात,
पहली दफा थे।
बेसवाल और,
बेजवाब था मै।
हाँ ये वहीँ दिन था,
जब बहुत से,
झूठे नखरो के बाद,
तुम पहली बार,
रूठे थे सच में।