सकारात्मकता और नकारात्मकता के मध्य के एक महीन सी ही रेखा होती है,जिसके एक ओर सकारात्मकता होती है दूसरी ऒर नकारात्मकता
कुछ संज्ञानो को माध्यम से ये स्पष्ट करना चाहूँगा...
एक दार्शनिक अवधारणा है #परमानन्द जिसके अंतर्गत ये माना जाता है की जब मनुष्य इतना सकरात्मक हो जाता है उसको न सुख और दुःख की अनुभति नहीं रह जाती है , हर स्थिति में वह एक सकरात्मक आनंद से अभिभूत रहता है.....दूसरी और आज के विध्वंसक उत्तर आधुनिक युग की एक मनोवैज्ञानिक समस्या है #अवसाद(डिप्रेसन) जिसका एक लक्षण यह है कि व्यक्ति न तो किसी बात में सुख का अनुभव करता है न ही किसी बात में दुःख का किन्तु यह स्थिति उस पर नकारात्मक भावना के प्रसार के कारण आती है .....इस प्रकार इन दोनों सकारात्मक और नकारात्मक अवधारणाओ का लक्षण लगभग एक सा है अंतर बस एक महीन सा है की एक स्थिति सकारात्मकता के संचार के कारण आई है तो दूसरी नकारात्मकता के संचार के कारण......ठीक ऐसी ही महीन सी रेखा सफलता और असफलता के बीच भी निर्मित होती है.. हम अपनी उन कमियों को दूर करके सफल हो सकते है जिनके फलस्वरूप हमें असफलता प्राप्त हुइ है और हम उनको खूबियों को बुझ कर सफल भी हो सकते है जो हमे मजबूती प्रदान करतीं हैं ...................परिस्थितिया भी प्रभावित करती है किन्तु सफलता और असफलता के बीच अंतर सिर्फ उन कारको का है जो व्यक्ति को आगे बढाते है या वो जो व्यक्ति हो पीछे करते है बस आवश्यकता है उन्हें पहचानने कि और तदनुसार आवश्यक प्रयत्नों को करने की....
#निष्कर्षतः हमें हारने या असफल होने पर निराश होने की आवश्यकता नहीं है , आवश्यक ये है की हम हार - जीत और सफलता-असफलता के बीच की उस महीन रेखा को समझकर उस आवश्यक कृत्य को सम्पादित कर ले जो हमारी सफलता और असफलता को सुनिश्चित करता है.
एक दार्शनिक अवधारणा है #परमानन्द जिसके अंतर्गत ये माना जाता है की जब मनुष्य इतना सकरात्मक हो जाता है उसको न सुख और दुःख की अनुभति नहीं रह जाती है , हर स्थिति में वह एक सकरात्मक आनंद से अभिभूत रहता है.....दूसरी और आज के विध्वंसक उत्तर आधुनिक युग की एक मनोवैज्ञानिक समस्या है #अवसाद(डिप्रेसन) जिसका एक लक्षण यह है कि व्यक्ति न तो किसी बात में सुख का अनुभव करता है न ही किसी बात में दुःख का किन्तु यह स्थिति उस पर नकारात्मक भावना के प्रसार के कारण आती है .....इस प्रकार इन दोनों सकारात्मक और नकारात्मक अवधारणाओ का लक्षण लगभग एक सा है अंतर बस एक महीन सा है की एक स्थिति सकारात्मकता के संचार के कारण आई है तो दूसरी नकारात्मकता के संचार के कारण......ठीक ऐसी ही महीन सी रेखा सफलता और असफलता के बीच भी निर्मित होती है.. हम अपनी उन कमियों को दूर करके सफल हो सकते है जिनके फलस्वरूप हमें असफलता प्राप्त हुइ है और हम उनको खूबियों को बुझ कर सफल भी हो सकते है जो हमे मजबूती प्रदान करतीं हैं ...................परिस्थितिया भी प्रभावित करती है किन्तु सफलता और असफलता के बीच अंतर सिर्फ उन कारको का है जो व्यक्ति को आगे बढाते है या वो जो व्यक्ति हो पीछे करते है बस आवश्यकता है उन्हें पहचानने कि और तदनुसार आवश्यक प्रयत्नों को करने की....
#निष्कर्षतः हमें हारने या असफल होने पर निराश होने की आवश्यकता नहीं है , आवश्यक ये है की हम हार - जीत और सफलता-असफलता के बीच की उस महीन रेखा को समझकर उस आवश्यक कृत्य को सम्पादित कर ले जो हमारी सफलता और असफलता को सुनिश्चित करता है.
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