इतिहास के पन्नो पर किसी को मिलने वाली जगह का निर्धारण - अभिलेखों(शिलाओं,चट्टानों,स्तंभों,धातुपत्रों,हाथी दांत,स्तूपों पर अंकित लेखो जो उक्त समय की लिपि में लिखे गये हों) की संख्या,उनमे लिखे हुए उद्धरण,
तात्कालीन समय में प्राप्त सिक्को की संख्या, उनमे उपयोग की गयी धातु, उनमें दर्ज उपाधियाँ, तत्कालीन समय की प्राप्त स्मारक, विहार,अध्यन केंद्र,तत्कालीन समय को किसी स्थान विशेष को देखने का विदेशी यात्रियों का दर्शन(देखने का नजरिया), तत्कालीन समय पर लिखी गयीं पुस्तकें,जीवनियाँ आदि सम्मलित रूप से करते थे।
जब हम बहुत जादा पीछे जाते हैं तो सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त चाह नगर महत्वपूर्ण थे और उनमे सबसे जादा महत्वपूर्ण था मोहनजोदड़ो क्युकी वहां से ही सिन्धु घटी सभ्यता की उन्नत नगर योजना जो आज के मेट्रो शहरों से भी जादा अच्छी थी। विशाल स्नानागार सभाभवन आदि मिले हैं....... दूसरी और चंदुहडो,कालीबंगा,बनवाली आदि नगरों की अच्छे से खुदाई ही नहीं की गयीं। मतलब सबकुछ बहुत हद तक इतिहास कारो के रवैये पर निर्भर था।
फिर जब जरा आगे बढ़ते हैं तो मोरी वंश के चन्द्रगुप्त मोर्य, और गुप्तवंश के समुद्रगुप्त तुलनात्मक रूप से अशोक से बड़े विजेता और रणनीतिकार और प्रशासक थे। किन्तु उनसे जादा ख्याति अशोक को प्राप्त हुई.. कारण सीधा सा है दूर-दूर तक फैले अशोक के अभिलेख जिनकी संख्या सर्वाधिक 200 हैं। जिसमें उसने काफी कुछ लिखवाया है और वहीँ उसकी महानता का मुख्य निर्धारक तत्व हैं।
बात की जाए सिक्को की तो पुराने समय में अब की तरह संकेत मुद्रा का प्रचलन होकर धातु की मुद्राओं का सीधा प्रचलन था। सिक्को की संख्या और उनके लिये उपयोग की गयी धातु यह बताती थी की राज्य कितना महत्वपूर्ण है.,क्युकी प्राचीन समय में सिक्को का प्रयोग राजा के वैभव का निर्धारण करता था। सोने के सिक्को को चलाना राज को इतिहास में अधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करवा देता था। सातवाहन,चेर,पांडय,शक,पल्लव आदि राजवंशो का तो पूरा इतहास ही सिक्को पर निर्भर हैं तत्कालीन समय में और भी छोटे छोटे राज्य थे लेकिन ये बाजी मार ले गये क्यूंकि इनके सिक्के अधिक से अधिक मात्र में प्राप्त हुए हैं।
अब बात की जाए स्मारकों की तो उसका भी अनुपम उदाहरण मोहनजोदडो और गुप्त वंश के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय(विक्रमादित्य) हैं क्युकी विक्रमादिय के समय की ही स्थापत्य कला के सबसे अधिक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
बात लिखित साहित्य की बात की जाए तो अगर कालिदास(अभिज्ञानसाकुन्तलम,मालविकाग्निमित्र) चाणक्य(अर्थशास्त्र) को छोड़ दिया जाय तो हमारा इतिहास पूरी तरह से बाहर से आय यात्रियों के नजरिये और लेखो पुस्तको पर निर्भर है। मेगास्थनीज,व्हेनसांग,फाह्यान,इत्सिंग अदि के वृतांत हमें हमारा इतिहास बताते हैं।
मेगास्थनीज ने इंडिका लिखकर मोर्यकाल को बताया। ह्वेनसांग जिसको यात्रियों के राजा की संज्ञा दी जाती हैं,
कन्नौज के हर्ष जो बहुत महत्वपूर्ण राजा नहीं उन्हें इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान इस यात्री के यात्रा वृतांत ने दिलवा दिया।
हमारा भारत का तो अधिकतर बस विदेशियों के बताये गये और लिखे पर निर्भर रहा है ठीकठाक कहा भी नहीं जा सकता कितना सही है कितना गलत। हो सकता है इतिहास में कुछ और,कोई और अधिक महत्वपूर्ण हो लेकिन उनके बारे में जादा कुछ मिला न हो या इतिहासकारों ने जानना या बताना अधिक जरुरी न समझा हो।
तात्कालीन समय में प्राप्त सिक्को की संख्या, उनमे उपयोग की गयी धातु, उनमें दर्ज उपाधियाँ, तत्कालीन समय की प्राप्त स्मारक, विहार,अध्यन केंद्र,तत्कालीन समय को किसी स्थान विशेष को देखने का विदेशी यात्रियों का दर्शन(देखने का नजरिया), तत्कालीन समय पर लिखी गयीं पुस्तकें,जीवनियाँ आदि सम्मलित रूप से करते थे।
जब हम बहुत जादा पीछे जाते हैं तो सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त चाह नगर महत्वपूर्ण थे और उनमे सबसे जादा महत्वपूर्ण था मोहनजोदड़ो क्युकी वहां से ही सिन्धु घटी सभ्यता की उन्नत नगर योजना जो आज के मेट्रो शहरों से भी जादा अच्छी थी। विशाल स्नानागार सभाभवन आदि मिले हैं....... दूसरी और चंदुहडो,कालीबंगा,बनवाली आदि नगरों की अच्छे से खुदाई ही नहीं की गयीं। मतलब सबकुछ बहुत हद तक इतिहास कारो के रवैये पर निर्भर था।
फिर जब जरा आगे बढ़ते हैं तो मोरी वंश के चन्द्रगुप्त मोर्य, और गुप्तवंश के समुद्रगुप्त तुलनात्मक रूप से अशोक से बड़े विजेता और रणनीतिकार और प्रशासक थे। किन्तु उनसे जादा ख्याति अशोक को प्राप्त हुई.. कारण सीधा सा है दूर-दूर तक फैले अशोक के अभिलेख जिनकी संख्या सर्वाधिक 200 हैं। जिसमें उसने काफी कुछ लिखवाया है और वहीँ उसकी महानता का मुख्य निर्धारक तत्व हैं।
बात की जाए सिक्को की तो पुराने समय में अब की तरह संकेत मुद्रा का प्रचलन होकर धातु की मुद्राओं का सीधा प्रचलन था। सिक्को की संख्या और उनके लिये उपयोग की गयी धातु यह बताती थी की राज्य कितना महत्वपूर्ण है.,क्युकी प्राचीन समय में सिक्को का प्रयोग राजा के वैभव का निर्धारण करता था। सोने के सिक्को को चलाना राज को इतिहास में अधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करवा देता था। सातवाहन,चेर,पांडय,शक,पल्लव आदि राजवंशो का तो पूरा इतहास ही सिक्को पर निर्भर हैं तत्कालीन समय में और भी छोटे छोटे राज्य थे लेकिन ये बाजी मार ले गये क्यूंकि इनके सिक्के अधिक से अधिक मात्र में प्राप्त हुए हैं।
अब बात की जाए स्मारकों की तो उसका भी अनुपम उदाहरण मोहनजोदडो और गुप्त वंश के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय(विक्रमादित्य) हैं क्युकी विक्रमादिय के समय की ही स्थापत्य कला के सबसे अधिक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
बात लिखित साहित्य की बात की जाए तो अगर कालिदास(अभिज्ञानसाकुन्तलम,मालविकाग्निमित्र) चाणक्य(अर्थशास्त्र) को छोड़ दिया जाय तो हमारा इतिहास पूरी तरह से बाहर से आय यात्रियों के नजरिये और लेखो पुस्तको पर निर्भर है। मेगास्थनीज,व्हेनसांग,फाह्यान,इत्सिंग अदि के वृतांत हमें हमारा इतिहास बताते हैं।
मेगास्थनीज ने इंडिका लिखकर मोर्यकाल को बताया। ह्वेनसांग जिसको यात्रियों के राजा की संज्ञा दी जाती हैं,
कन्नौज के हर्ष जो बहुत महत्वपूर्ण राजा नहीं उन्हें इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान इस यात्री के यात्रा वृतांत ने दिलवा दिया।
हमारा भारत का तो अधिकतर बस विदेशियों के बताये गये और लिखे पर निर्भर रहा है ठीकठाक कहा भी नहीं जा सकता कितना सही है कितना गलत। हो सकता है इतिहास में कुछ और,कोई और अधिक महत्वपूर्ण हो लेकिन उनके बारे में जादा कुछ मिला न हो या इतिहासकारों ने जानना या बताना अधिक जरुरी न समझा हो।
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