कहाँ जा रहें हैं हम?,
किस ओर हैं कदम?
किस दिशा है मंजिल,
आधुनिकता की चकाचौंध में,
आदर्शो और शुपराम्पराओं कि,
न पुछ है न परख.
स्वार्थ परक् है हर रिश्ता,
आत्मीयता है अब मात्र किस्सा.
प्रचार और दिखावे अब रिवाज है,
वास्तविकता की अब दबी सी आवाज है.
कहा जा रहे हैं हम,
किस ओर है कदम,
इस हड़बड़ी में , धुल न हो जाए सब,
खो जाए न विश्वास,
खाक न हो अपनापन।
किस दिशा है मंजिल,
आधुनिकता की चकाचौंध में,
आदर्शो और शुपराम्पराओं कि,
न पुछ है न परख.
स्वार्थ परक् है हर रिश्ता,
आत्मीयता है अब मात्र किस्सा.
प्रचार और दिखावे अब रिवाज है,
वास्तविकता की अब दबी सी आवाज है.
कहा जा रहे हैं हम,
किस ओर है कदम,
इस हड़बड़ी में , धुल न हो जाए सब,
खो जाए न विश्वास,
खाक न हो अपनापन।
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