"खत्म हो गया कालापानी तुम्हारा,
के अब भी फिर रहे हो मारे-मारे।
क्यों डूबे इतनी गहराई में,
जब मंजिल क्या रास्ते मे ओझल थे।
वो सागर इश्क़ का था,
जहाँ चहूँ ओर गुलाबी घेरा होता है,
उसमे फँसा हर इंसान,
बस इश्क़ की वेदी का एक फेरा होता है।
सुनो न इश्क़ मुकम्मल होगा,
न भटकना थमेगा दरबदर।
मैं तो कहता हूं धर लो वैराग्य,
हो जायेगा सारा तिलिस्म बेअसर। "
"चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते हैं. बंद आँखों की बातो को,अल्हड़ से इरादों को, कोरे कागज पर उतारेंगे अंतर्मन को थामकर,बाते उसकी जानेंगे चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते है"
मंगलवार, 25 जुलाई 2017
शीर्षक रहित
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"
तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...
-
पतझड़ के सुर्ख मौसम में फूल क्यों खिल रहे हैं शायद तुम आये हो। सूने सूने मन के आंगन में ये खिलखिलाहट कैसी शायद तुम आये हो। गुमसुम सी इस सुब...
-
हर रोज मरता हूँ, हर रोज जीता हूँ। न मैं मर पाया पूरा, मेरा जीना भी रह गया थोड़ा। कुछ तो रह गया अधूरा। जीना भी है, और मरना भी है। ये अवश्यसंभा...
-
अपनी उम्मीदों एक आसमान सबका होता है। वो उम्मीदें कभी रातों में ख्वाबों में ढल जाती हैं .... कभी दिन की बेताबी में उतर जातीं हैं। उम्मीदों ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें