"हम भटकते भी खुद में हैं,
और सही रास्ता भी हम में ही समाहित हैं।
किन्तु गलत रास्ते जब जादा उभरकर आ जाते हैं,
तो बस भटकने का दौर सा चल पड़ता है। "
ये निर्भर करता है हमारे चुनाव पर,की हमने कौन सा रास्ता चुना हैं।
उस पाषाण के जैसा, जो अपना रास्ता कभी नहीं बदलता भले ही एक जगह आकर स्थिर क्यों न हो जाए।
या फिर उस मोर पंख के जैसा, जो स्वयं को वायु के प्रभाव पर छोड़ देता है।
या फिर एक उफनती तरुण नदी ही तरह, जो राह में आने वाली मिटटी को खीँच ले जाती है,
अपने रास्ते...और बहती जाती है कल-कल।
और सही रास्ता भी हम में ही समाहित हैं।
किन्तु गलत रास्ते जब जादा उभरकर आ जाते हैं,
तो बस भटकने का दौर सा चल पड़ता है। "
ये निर्भर करता है हमारे चुनाव पर,की हमने कौन सा रास्ता चुना हैं।
उस पाषाण के जैसा, जो अपना रास्ता कभी नहीं बदलता भले ही एक जगह आकर स्थिर क्यों न हो जाए।
या फिर उस मोर पंख के जैसा, जो स्वयं को वायु के प्रभाव पर छोड़ देता है।
या फिर एक उफनती तरुण नदी ही तरह, जो राह में आने वाली मिटटी को खीँच ले जाती है,
अपने रास्ते...और बहती जाती है कल-कल।
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