वृक्षों का करुण क्रंदन सुना था?
जब तुमने फूल तोड़ा
फिर उसकी पँखुड़ियाँ
बिखेरते वक़्त
कलियों का रुदन सुना था?
तुमने नदियों को टोका
फिर बांध बनाया
तब लहरों का
विद्रोह स्वर सुना था?
जब कर रहे थे परमाणु परीक्षण
तब विस्फोट करते वक़्त
भूमि का क्रुद्ध कंपन सुना था?
तुमने खनिज खोजे
किया आदिवासी विस्थापन
तब उन वनचरों का दर्द सुना था?
तुमने किया था बहुत कुछ
लेकिन बहुत कुछ सुनना
भूल गए थे।"
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