मंगलवार, 17 मार्च 2015

हवा

पूछा मैंने हवा से,
किधर है तेरी दिशा।
उसने कहा चल हट,
मुझे क्या पता। 
मै तो मनचली हूँ,
अपने रंग में ढली हूँ।
बहती हूँ मै बेलगाम,
मुझे औरों से क्या काम।
मेरा ना कोई छोर,
ना मैं किसी ओर। 
अपनी धुन में बहती हूँ,
अपनी मौज में रहती हूँ।
कहाँ जाना है,किधर जाना है,
मुझे ये सब ना पता।
मुझे बस बहते रहना  है,
सबको तृप्त करना है।
ना मेरा कोई देश,
ना ही कोई पंथ।
ना मेरी शुरूआत,
ना ही मेरा अंत।
हाँ मैं रुकूँगी तो,
सारा जहाँ रुक जाएगा।
बिना मेरे कोई कहाँ,
कोई टिक पाएगा।
मुझे बस चलना है, 
और चलते जाना है।
सारा जहाँ अपना है,
बस यही कहते जाना है।
बिना किसी भेदभाव के,
सबको जीवन देते जाना है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...