"भावों का भी होता है ऋतूछरण।
बेसाल्ट की तरह।
फिर हो जाते हैं वो कायांतरित।
द्वेष के जमाव से।
और हो जाते हैं वो काकवर्ण।
मिटटी की तरह।
बढ़ जाती है छमता उनकी।
धीरज धरने की।
फिर उपज जाती हैं दूरियां।
धीरे-धीरे।
संबध हो जाते हैं अम्लीय।
कभी-कभी।
खा जाता है आत्मीयता को।
जाल स्वार्थों का।
और पड़ जाते हैं दाग-धब्बे।
रिश्तों की डोर पर।
कभी खो जाती है मूल वृत्ति।
अपनत्व की।
गोंडवाना शैलों की तरह।
बदल जाता है रंग उसका।
हो जाती हैं संभावनाएँ कम।
साथ चलने की।"
बेसाल्ट की तरह।
फिर हो जाते हैं वो कायांतरित।
द्वेष के जमाव से।
और हो जाते हैं वो काकवर्ण।
मिटटी की तरह।
बढ़ जाती है छमता उनकी।
धीरज धरने की।
फिर उपज जाती हैं दूरियां।
धीरे-धीरे।
संबध हो जाते हैं अम्लीय।
कभी-कभी।
खा जाता है आत्मीयता को।
जाल स्वार्थों का।
और पड़ जाते हैं दाग-धब्बे।
रिश्तों की डोर पर।
कभी खो जाती है मूल वृत्ति।
अपनत्व की।
गोंडवाना शैलों की तरह।
बदल जाता है रंग उसका।
हो जाती हैं संभावनाएँ कम।
साथ चलने की।"
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