संतोष की सीमाओं के उसपार,
बहुत कुछ होता है।
अक्सर हमारे,
अचेतन मन में रुका हुआ।
ये अतिवादी इक्षाएं,
यदा कदा
बंद आंख कें स्वपनों में ही,
पूरी हो जाती हैं,
या अधूरी रह जाती हैं।
कई दफे में हम,
नींद के पहरों में कैद होकर,
उन्ही अरमानो को
जी भी लेते हैं
जो हकीकत में
घटित नहीं हो पाते।
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