"वो कहती थी!
इश्क के मकान से गुजरकर
कुछ एहसास ले आऊं।
इश्क के मकान से गुजरकर
कुछ एहसास ले आऊं।
मै था कि
डेहरी से लौट आता था।
कभी कभी चंद पंक्तियाँ उतार देता था पन्नो पर,
कभी कभी चंद पंक्तियाँ उतार देता था पन्नो पर,
शायद यहीं मेरी सौगातें थीं उसके लिये।
वैसे बहुत कुछ था छिपा हुआ सबसे,
वहीं था जो मेरी कत्त्थई डायरी के पन्नो तक सिमटा हुआ था।
वहीं था जो मेरी कत्त्थई डायरी के पन्नो तक सिमटा हुआ था।
उममें सब उसका था मेरी लेखनी के अलावा।
एहसास सारे उसके लिये थे।
शब्द सारे उसके लिये थे।
वो सबकुछ उसमें था
जो मेरे होंठो की दहलीज लांघ नहीं पाता।
किसी के साथ जन्म-जन्मांतर तक
साथ आने की रश्में निभाने के बाद।
जब वो लाल जोड़े में बैठी हुई थी।
तभी वो डायरी और उसमें उपजे सारे एहसास
उसे सुपुर्द कर आया।
उसे सुपुर्द कर आया।
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