शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

धूप वंदना

उष्ण है आँचल तेरा,
पर देता है शीतलता
आँखों को।
कभी-कभी असहनीय है
पर तू आवश्यक है।
तृष्ण सी है आभा तेरी,
पर देती है हरियाली तू
प्रकृति को।
तू प्राणदायनी है,
यूँ ज्वलित होकर भी
उत्पादन करती है,
अतुल्य तेरा ताप है
पर देती तू संताप है।
तू जीवन की प्रसूता है।
तेजोमया है करुणामयी है।"

 "अदम्य उर्जा का श्रोत है तू  धूप।"
 


 

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