एकबार स्वर्ग में देवताओ के बीच मंत्रणा हुई की शर्म को पृथ्वी पर कहाँ भेजा जाए। फिर ये निश्चित किया गया की उसे भारत में निवास करने भेजा जाएगा। उसने जैसे ही भारत की धरती पर कदम रखा। कुछ वहसी दरिन्दे उसे खा जाने वाली नजरो से घूरने लगे। जैसे तैसे उनसे नजरे बचाते आगे बढ़ी ही थी की वो इंसान के रूप में बैठे कुछ शैतानो क हाथ लगी और वो उसे नोचने खसोटने लगे और उसका व्यापार करे लगे। उसके बाद शर्म का पता लगाने के लिए देवताओं ने जमीर को भारत भेजा। वो आते साथ कुछ नेताओं पत्रकारों और अधििकारयों के हाथो मारा गया।
"चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते हैं. बंद आँखों की बातो को,अल्हड़ से इरादों को, कोरे कागज पर उतारेंगे अंतर्मन को थामकर,बाते उसकी जानेंगे चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते है"
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"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"
तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...
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एक शीशमहल में चिरनिद्रा में। देख रहा था स्वप्न वो। सीधी और सुंदर राह में, पंक्तिबद्ध खड़े वृक्षों को। हर डाल पर बैठे पंछियों को। उनके सुनहरे ...
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(पीड़ाएँ ) पीड़ाएँ कभी लुप्त नही होतीं उनकी अनदेखी कर दी जाती है। * (वेदनाएँ) वेदनाएँ कभी मृत नही होतीं हमारे आँसू संकीर्ण हो जाते हैं। ** (सं...
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