मंगलवार, 14 मार्च 2023

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो।
जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो।

फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो।
हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो।

जल धाराओं को अधिक वेग दे दो।
पेड़ों को अधिक हरियाली से भर दो।

पशुओं को विस्तृत चारागाह दे दो।
जंगलों को अधिक घनघोर कर दो।
 
प्राकृतिक सततता का बीड़ा उठाओ
नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो।

【अविनाश कुमार तिवारी】🍁

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

एक कविता किसी मन से निकले

शब्दधारा किसी हृदय से बह निकले
फिर कई हृदयों को छूकर सींच दे।
एक नदी कहीं से प्रवाहमान हो
कई जलधियों में हलचल कर दे।
एक करुण पुकार कहीं पर गूँजे
कई पत्थरों को कोमल कर दे।
एक फूल कहीं पर खिले
कई कंटको को नर्म कर दे।
एक आराधना कहीं कोई बांचे
कई भवनों को पावन कर दे।
एक कविता किसी मन से निकले
कई कल्पनाओं को अभिव्यक्ति दे।
🌼🍁

【अविनाश कुमार तिवारी 】

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

नई कोंपलें


"कहीं न कहीं पर तो
नई कोंपलें फूटती होंगी
दरख्तों के सूख जाने से
ठीक पहले।"🍁



मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

'पर्वतों से कोई नदी निकली थी'

यहाँ पर्वतों से कोई नदी निकली थी
कहाँ तुम थे और वो कहीं निकली थी।

जो निकल गए कहीं,कल संवारने को
दूर उनसे उनकी सरजमीं निकली थी।

जो थक चुकी थीं दुःख देख देख कर
उन आँखों से सारी नमी निकली थी।

साथ रहकर जब हम दूर हो गए 
हममें बहुत सारी कमी निकली थी।

संजीदगी थी,फिर कुछ याद आया
होंठो पर यूँही इक हँसी निकली थी।

उम्र तय हो गई बहुत लम्बी मगर
कुछ चाहतें अभी नही निकलीं थी।

मैंने चाहा था कि वो गलत हो जाएं
वो गफलतें सारी सही सही निकलीं थीं।

- अविनाश कुमार तिवारी

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

(पीड़ाएँ )
पीड़ाएँ कभी लुप्त नही होतीं
उनकी अनदेखी कर दी जाती है।
*
(वेदनाएँ)
वेदनाएँ कभी मृत नही होतीं
हमारे आँसू संकीर्ण हो जाते हैं।
**
(संभावनाएं)
"वहाँ सब संभव है,
जहाँ सच्चे भाव होते हैं।
जहाँ प्रयत्न सीमित हो,
वहीं आभाव होते हैं।"
***
(निवारण)
"पीड़ाएँ,अभिव्यक्ति से अधिक
निवारण की राह तकतीं हैं।"
****

- अविनाश कुमार तिवारी

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

एक शीशमहल में चिरनिद्रा में।
देख रहा था स्वप्न वो।
सीधी और सुंदर राह में,
पंक्तिबद्ध खड़े वृक्षों को।
हर डाल पर बैठे पंछियों को।
उनके सुनहरे पँखो को।

फिर नींद टूटी,आँख खुली।
हो गया हर दृश्य अगोचर।
फेरी दृष्टि चारो ओर,
हर शीशे में कुछ प्रतिकृतियां थी।
हर ओर फैला था दृश्य विकट।

कहीं आँखों से बरसता पानी था।
कहीं सहमा सा कोई बचपन था।
कहीं रंजो,नफरतों के मेले थे।
कुछ शोषित खड़े अकेले थे।
कहीं गिद्ध सी कुछ आंखे थी।
कहीं असहज सी कई राते थी।
कहीं पाखंड का कारोबार था।
कहीं धर्म का व्यापार था।
कहीं राजनीति खिलखिला रही थी।
कहीं मानवता तन्हा खड़ी थी।"

तभी मोबाइल में किसी का फोन आया
और रिंगटोन बज उठी -
"जहाँ डाल डाल पर सोने की
चिड़िया करती है बसेरा
वो भारत देश है मेरा'

- अविनाश कुमार तिवारी

सोमवार, 30 जनवरी 2023

......

नदियों के लिए,

कोई मंथन नही करना पड़ता।

धरा का अमृत,

पर्वतों से फूटकर बहने लगता है।

धरती की ममता

स्त्री की ममता से कहीं विशाल है

कब कोई चलाएगा, 

धरतीवाद का कोई आंदोलन! 💙


- अविनाश कुमार तिवारी

........

संघर्ष सबके थे,

कहानियाँ उनके संघर्षों की बनीं।

जिन्होंने कोई मुकाम पा लिया।

प्रयास सबके थे,

साख उनके प्रयासों को मिली।

जिन्होंने ने सफलता को पा लिया।


समय कोशिशों से ज्यादा,

उनके परिणाम देखता है।


ये बात धूमिल हो गई थी, 

कौन मंजिल के करीब आकर चूका था।

जिसने उसको हासिल किया,

इति श्री बाद में नाम तो उसी का गूंजा था।


मै नही कहता किसी को 

"कर्म करो फल की चिंता मत करो"

फल को न चूका जाने वाला लक्ष्य बनाओ

कार्य के परिणाम की बराबर चिंता करो।


- अविनाश कुमार तिवारी

.......

हर नदी पूजनीय होती है,जीवनदायिनी है

तुम अपने नगर की गंगा की आरती करो।


- अविनाश कुमार तिवारी

.........

जरूरी है उम्मीदों का मारा जाना

थोड़ा सा सही तुम्हें लताड़ा जाना।


बागों में जो सुंदर फूल खिले थे

तय ही था उनका भी तोड़ा जाना।


बसंत से मोह तो सबने रखा था

रुका कभी नही पतझड़ का आना।


जिससे तुमने मुख मोड़ना चाहा

लगा रहा उम्र भर उसी राह जाना।


जिस ओर तुमने मुड़ मुड़ कर देखा

फिर नही आया वो गुजरा जमाना।


हर पड़ाव तुमने मन से अपनाया

पर रहा कहाँ कहीं ठौर ठिकाना।


- अविनाश कुमार तिवारी 🌻

.......

हम ख़्वाहिशों को पर ताले जड़ कर 

चाभियाँ तक भूल जाते हैं।

मन को दसियों अदृश्य बंधनो में बांधकर 

कितने पड़ावों को पार करते जाते हैं।

परिस्थितियों और जिम्मेदारियों का हवाला देकर 

समय दर समय कितना कुछ खोते जाते हैं।

ऐसी कितनी ही जुगत लगाते हैं पर 

जीवन की अनिश्चितताओं से पार नही पा पाते।


खुद को एक कम्फर्ट जोन का कूपमंडूक बना के

कुछ नया करने का जोखिम लेने से,डर डर कर 

कितना समय, एक गधे पर लदे बोझ की तरह

बस खींचते जाते हैं।


जबकि सांसो की डोर कब थम जाए।

कब जीवन मे सब कुछ,

एक सिरे से पूरी तरह से पलट जाए।

किसी को नही पता होता।

सारी मनमारियां,सारी जुगतें,

परिस्थितियों से किये सारे समझौते 

धरे के धरे रह जाते हैं।


बहुत अच्छे होते हैं वो लोग,

जो खुलकर अपने लिए प्रयास करते हैं। 

बहुत सारे जोखिम उठाते हैं। 

सौ दफे असफल होते हैं । 

कल की फिक्र को,कई दफे किनारे करके 

आज और अभी में रहते हैं। 

ऐसे लोगो का सम्मान किया जाना चाहिए।


- अविनाश_कुमार_तिवारी

दो आंखें - हजार कहानियाँ

दो आँखों मे हैं,

हजार कहानियाँ।

हैं एक तन कि,

कितनी जिंदगानियाँ।


कौन है तुम्हारे पास,

जो पढ़ पाता है,

तुम्हारी परेशानियां।


खुद ही बन जाओ,

आप अपना ही आईना।

देखो अपनी आँखों में,

रवां हैं खुद से नाराजगियां।


बूझो माथे की लकीरों में

उभरी हैं कितनी, 

बेमन की रवानियाँ।


[अविनाश कुमार तिवारी] 🌼

.......

मासूमियत भी देखेंगे मसखरापन भी देखेंगे

सुन यार एक-दूजे को हम क्यों अधूरा देखेंगे।


कितने गहरे,कितने उथले हैं लोग क्यूँ बताएँ

आ बैठ एक-दूजे की आँखों मे आईना देखेंगे।🍁


[अविनाश कुमार तिवारी]

.......

छवियों में कितने भाव होते होंगे।

हम छवियों में अधिकतर मुस्कुराते हैं।

ताकि हमारा प्रतिबिंब सुखद सा उभरे।

इन प्रतिबिंबों में हम रोने से बचते हैं!

हम अपने रुदन को बचाकर रखना चाहते हैं।


साथ मे हँसने को हम,

किसी के साथ भी हँस लेते हैं।

साथ मे रोने के लिए विरले ही मिलते हैं।


रुदन हँसी से अधिक मूल्यवान है!

उसे अपने पास 

ज्यादा बचाकर कर रखना

जो तुम्हारे साथ रोया हो।


- अविनाश कुमार तिवारी

......

हारो नही तुम सपने देखो

बंधन तोड़ो दुनिया जीतो 

🕊️

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...