दो आँखों मे हैं,
हजार कहानियाँ।
हैं एक तन कि,
कितनी जिंदगानियाँ।
कौन है तुम्हारे पास,
जो पढ़ पाता है,
तुम्हारी परेशानियां।
खुद ही बन जाओ,
आप अपना ही आईना।
देखो अपनी आँखों में,
रवां हैं खुद से नाराजगियां।
बूझो माथे की लकीरों में
उभरी हैं कितनी,
बेमन की रवानियाँ।
[अविनाश कुमार तिवारी] 🌼
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