हम ख़्वाहिशों को पर ताले जड़ कर
चाभियाँ तक भूल जाते हैं।
मन को दसियों अदृश्य बंधनो में बांधकर
कितने पड़ावों को पार करते जाते हैं।
परिस्थितियों और जिम्मेदारियों का हवाला देकर
समय दर समय कितना कुछ खोते जाते हैं।
ऐसी कितनी ही जुगत लगाते हैं पर
जीवन की अनिश्चितताओं से पार नही पा पाते।
खुद को एक कम्फर्ट जोन का कूपमंडूक बना के
कुछ नया करने का जोखिम लेने से,डर डर कर
कितना समय, एक गधे पर लदे बोझ की तरह
बस खींचते जाते हैं।
जबकि सांसो की डोर कब थम जाए।
कब जीवन मे सब कुछ,
एक सिरे से पूरी तरह से पलट जाए।
किसी को नही पता होता।
सारी मनमारियां,सारी जुगतें,
परिस्थितियों से किये सारे समझौते
धरे के धरे रह जाते हैं।
बहुत अच्छे होते हैं वो लोग,
जो खुलकर अपने लिए प्रयास करते हैं।
बहुत सारे जोखिम उठाते हैं।
सौ दफे असफल होते हैं ।
कल की फिक्र को,कई दफे किनारे करके
आज और अभी में रहते हैं।
ऐसे लोगो का सम्मान किया जाना चाहिए।
- अविनाश_कुमार_तिवारी
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