नदियों के लिए,
कोई मंथन नही करना पड़ता।
धरा का अमृत,
पर्वतों से फूटकर बहने लगता है।
धरती की ममता
स्त्री की ममता से कहीं विशाल है
कब कोई चलाएगा,
धरतीवाद का कोई आंदोलन! 💙
- अविनाश कुमार तिवारी
"चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते हैं. बंद आँखों की बातो को,अल्हड़ से इरादों को, कोरे कागज पर उतारेंगे अंतर्मन को थामकर,बाते उसकी जानेंगे चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते है"
तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...
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