सोमवार, 30 जनवरी 2023

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नदियों के लिए,

कोई मंथन नही करना पड़ता।

धरा का अमृत,

पर्वतों से फूटकर बहने लगता है।

धरती की ममता

स्त्री की ममता से कहीं विशाल है

कब कोई चलाएगा, 

धरतीवाद का कोई आंदोलन! 💙


- अविनाश कुमार तिवारी

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संघर्ष सबके थे,

कहानियाँ उनके संघर्षों की बनीं।

जिन्होंने कोई मुकाम पा लिया।

प्रयास सबके थे,

साख उनके प्रयासों को मिली।

जिन्होंने ने सफलता को पा लिया।


समय कोशिशों से ज्यादा,

उनके परिणाम देखता है।


ये बात धूमिल हो गई थी, 

कौन मंजिल के करीब आकर चूका था।

जिसने उसको हासिल किया,

इति श्री बाद में नाम तो उसी का गूंजा था।


मै नही कहता किसी को 

"कर्म करो फल की चिंता मत करो"

फल को न चूका जाने वाला लक्ष्य बनाओ

कार्य के परिणाम की बराबर चिंता करो।


- अविनाश कुमार तिवारी

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हर नदी पूजनीय होती है,जीवनदायिनी है

तुम अपने नगर की गंगा की आरती करो।


- अविनाश कुमार तिवारी

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जरूरी है उम्मीदों का मारा जाना

थोड़ा सा सही तुम्हें लताड़ा जाना।


बागों में जो सुंदर फूल खिले थे

तय ही था उनका भी तोड़ा जाना।


बसंत से मोह तो सबने रखा था

रुका कभी नही पतझड़ का आना।


जिससे तुमने मुख मोड़ना चाहा

लगा रहा उम्र भर उसी राह जाना।


जिस ओर तुमने मुड़ मुड़ कर देखा

फिर नही आया वो गुजरा जमाना।


हर पड़ाव तुमने मन से अपनाया

पर रहा कहाँ कहीं ठौर ठिकाना।


- अविनाश कुमार तिवारी 🌻

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हम ख़्वाहिशों को पर ताले जड़ कर 

चाभियाँ तक भूल जाते हैं।

मन को दसियों अदृश्य बंधनो में बांधकर 

कितने पड़ावों को पार करते जाते हैं।

परिस्थितियों और जिम्मेदारियों का हवाला देकर 

समय दर समय कितना कुछ खोते जाते हैं।

ऐसी कितनी ही जुगत लगाते हैं पर 

जीवन की अनिश्चितताओं से पार नही पा पाते।


खुद को एक कम्फर्ट जोन का कूपमंडूक बना के

कुछ नया करने का जोखिम लेने से,डर डर कर 

कितना समय, एक गधे पर लदे बोझ की तरह

बस खींचते जाते हैं।


जबकि सांसो की डोर कब थम जाए।

कब जीवन मे सब कुछ,

एक सिरे से पूरी तरह से पलट जाए।

किसी को नही पता होता।

सारी मनमारियां,सारी जुगतें,

परिस्थितियों से किये सारे समझौते 

धरे के धरे रह जाते हैं।


बहुत अच्छे होते हैं वो लोग,

जो खुलकर अपने लिए प्रयास करते हैं। 

बहुत सारे जोखिम उठाते हैं। 

सौ दफे असफल होते हैं । 

कल की फिक्र को,कई दफे किनारे करके 

आज और अभी में रहते हैं। 

ऐसे लोगो का सम्मान किया जाना चाहिए।


- अविनाश_कुमार_तिवारी

दो आंखें - हजार कहानियाँ

दो आँखों मे हैं,

हजार कहानियाँ।

हैं एक तन कि,

कितनी जिंदगानियाँ।


कौन है तुम्हारे पास,

जो पढ़ पाता है,

तुम्हारी परेशानियां।


खुद ही बन जाओ,

आप अपना ही आईना।

देखो अपनी आँखों में,

रवां हैं खुद से नाराजगियां।


बूझो माथे की लकीरों में

उभरी हैं कितनी, 

बेमन की रवानियाँ।


[अविनाश कुमार तिवारी] 🌼

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मासूमियत भी देखेंगे मसखरापन भी देखेंगे

सुन यार एक-दूजे को हम क्यों अधूरा देखेंगे।


कितने गहरे,कितने उथले हैं लोग क्यूँ बताएँ

आ बैठ एक-दूजे की आँखों मे आईना देखेंगे।🍁


[अविनाश कुमार तिवारी]

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छवियों में कितने भाव होते होंगे।

हम छवियों में अधिकतर मुस्कुराते हैं।

ताकि हमारा प्रतिबिंब सुखद सा उभरे।

इन प्रतिबिंबों में हम रोने से बचते हैं!

हम अपने रुदन को बचाकर रखना चाहते हैं।


साथ मे हँसने को हम,

किसी के साथ भी हँस लेते हैं।

साथ मे रोने के लिए विरले ही मिलते हैं।


रुदन हँसी से अधिक मूल्यवान है!

उसे अपने पास 

ज्यादा बचाकर कर रखना

जो तुम्हारे साथ रोया हो।


- अविनाश कुमार तिवारी

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हारो नही तुम सपने देखो

बंधन तोड़ो दुनिया जीतो 

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"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...