"मैं लिखूँगा रुष्ठ कविताएँ।
स्वयँ लिखूँगा,
स्वयं के विरुद्ध कविताएँ।
अब मुँह फेरकर बैठीं
बहुत चहकने वाली
छंदमुक्त कविताएँ।
समय से आगे बढ़ चुकीं
कल्पना में उड़ती
कालमुक्त कविताएँ।
बनती और बिगड़ती
अनवरत सृजित होतीं
सदा आवृत्त कविताएँ
इनसे ही चलित हूँ मैं
हैं मुझमें समाहित,
अंनत कविताएँ।"
- अविनाश कुमार तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें