शनिवार, 21 मार्च 2015

खुशियो का एक लम्हा


आओ हम खुशियो का 
एक लम्हा चुरा लेते हैं।  
एक लम्हे को संजोकर 
हम दशको बीता लेंगे।
खिलखिलाता सा 
एक घर बना लेंगे।  
हाथो में हाथ लेकर 
मुस्कराहट से सजा देंगे। 
तुम्हारी हँसी की नीव पर 
वो घर खड़ा होगा। 
नखरों से तुम्हारे खर्चा चलेगा। 
तुम्हारी मासूम शरारते होंगी 
सामान सजावट का।  
छोटी-छोटी खुशियाँ संजोकर 
छू लेंगे आसमान।  
हाँ आओ चलो बसाते है आशियाँ 
देकर साथ एक-दूजे का 
बनाये अपना जहाँ। 

गुरुवार, 19 मार्च 2015

नटखट

हो नटखट तुम,
थोड़े बेखबर से।
खुद में मस्त रहते हो,
दुनिया से अंजान से।
भोले भाले हो,
हो तुम नादान।
अकल के कच्चे हो,
प्यारे बच्चे हो।
तुम्हे रंग अभी खुद में भरना है,
आगे बहुत कुछ करना है
छोड़ना ना  तुम
मीठे सपनो की डोर को
ये ले जाएगी तुम्हे ये
नई एक भोर को।                          

मंगलवार, 17 मार्च 2015

हवा

पूछा मैंने हवा से,
किधर है तेरी दिशा।
उसने कहा चल हट,
मुझे क्या पता। 
मै तो मनचली हूँ,
अपने रंग में ढली हूँ।
बहती हूँ मै बेलगाम,
मुझे औरों से क्या काम।
मेरा ना कोई छोर,
ना मैं किसी ओर। 
अपनी धुन में बहती हूँ,
अपनी मौज में रहती हूँ।
कहाँ जाना है,किधर जाना है,
मुझे ये सब ना पता।
मुझे बस बहते रहना  है,
सबको तृप्त करना है।
ना मेरा कोई देश,
ना ही कोई पंथ।
ना मेरी शुरूआत,
ना ही मेरा अंत।
हाँ मैं रुकूँगी तो,
सारा जहाँ रुक जाएगा।
बिना मेरे कोई कहाँ,
कोई टिक पाएगा।
मुझे बस चलना है, 
और चलते जाना है।
सारा जहाँ अपना है,
बस यही कहते जाना है।
बिना किसी भेदभाव के,
सबको जीवन देते जाना है।

रविवार, 15 मार्च 2015

हवा के परो पर



हवा के परो पर 
आसमानी घरो पर 
होगा अपना ठिकाना। 
मद्धम मद्धम तुम बहना,
मैं सर-सर-सर बलखाउँगा।
हवाई सुरों का राग होगा,
मतवाले गीत मैं गाऊंगा।
होके मगन तुम थिरकते रहना,
मैं मनचली तान सुनाऊंगा।
चारो ओर होगा बस
खुला आसमान।
न किसी की फ़िकर 
न किसी का काम 
बस सुरों से सजी थाल होगी 
खुसियों का खनकता साज होगा।
                    

शनिवार, 14 मार्च 2015

इतिहास कोई खास नहीं आम ही रचता है

जरा हटके ... बात आपके दिल तक पहुंच गयी तो ठीक न पहुंची तो भी बात निकल तो गयी है गौर जरूर फरमाइयेगा
"अधिकतर..कुछ खास या बड़े काम करने वाले को ही याद किया जाता है या फिर महान ना भी हो तो लोगो की नजर में महान होने पर उसको याद किया जाता है ऐसेवाले उदाहरण बहुत है हमारे राजनितिक इतिहास में
पर किसी को खास बनता कौन है आम इंसान ही बनता है हाँ इनको याद करना पड़ता है क्युकी महान लोग दुनिया से चले भी जाते है
पर आम इंसान तो कभी नहीं जाता...वो आज भी वही है कल भी वही था पहले मालिको सामंतो की गुलामी की तो कभी जमींदार का कर्जदार बंधुआ मजदूर बना तो कभी खेतिहर मजदूर तो एक दिहाड़ी मजदूर तो पूंजीवादी/नौकरशाही युग में दिन रात मेहनत कर अपने परिवार के लिए छोटी छोटी खुसिया बटोरने में लगा मद्यवर्गीय आदमी या सर पे बोझ उठाने वाली रेजा अपने घर की संवारती एक गृहणी .
या घर और नौकरी के बीच झूलती एक नौकरीपेशा. ये आम लोग तो कल भी वैसे ही थे आज भी वैसे भी है बस समय बदला चेहरे बदले किरदार तो वही है ये तो इतिहास से कभी गया ही नहीं और ये आम इंसान तो हमेसा रहेगा और इतिहास रचता रहेगा किसी को महान बनाएगा तो किसी को भुला देगा...पर ये तो अनवरत हर समय में जीवन को चुनौती देता रहेगा छोटी छोटी खुसिया बटोरता रहेगा हम आम नहीं हम खास है क्युकी हमारे कारन ही तो कोई खास है "

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

बिखरी बातें


ये बिखरी बातें,बेचैन सी रातें।

यूँ चुप-चुप सी,अनसुनी आहटें।


दिल की बातें कहने को,  
भावों की धार में बहने को,

में हर-पल तत्पर रहता हूँ;
बस तेरी बाते कहता हूँ।

जाने कैसा उन्माद है ये, 
जो मुझमे उठता रहता है।
तुझे कह दूँ की चुप रह जाऊँ,
इस बोझ को कैसे सह पाऊँ।

बिन कहे ही तुम सब सुन लो न,

आँखों को मेरी पढ़ लो न।

हर पल तेरे ख्वाब सजाता हूँ,
रूठ कर तुझसे मैं;
खुद ही खुद को मनाता हूँ।
कभी आकर तुम मना लो न,
मेरे बिखरे ख्वाब सजा दो न।


बेरंग सी है जिंदगी ये,
इसे प्यार का रंग लगा दो न।


- अविकाव्य

गुरुवार, 12 मार्च 2015

नासमझ

हाँ मैं नासमझ हूँ,

बचपन की में ललक हूँ।

मैं तो कच्ची मिटटी हूँ,

बेगाने अकार को निकली हूँ। 

हर रंग में ढल जाती हूँ,

हर नब्ज में मिल जाती हूँ।

अव्यवस्थित सा मैं साज हूँ,

असंगठित आगाज हूँ।

मैं खुद से बाते करती हूँ

बेहमतलब में मै हँसती हूँ। 

मुझे हर को सच्चा लगता है,

अंजान  भी अच्छा लगता है

हर चिंता से आजाद हूँ मैं

हाँ अभी तो बस शुरुआत हूँ मैं।

नादान सी उड़ान

नादान सी उड़ान पर
अंजान सी डगर पर,
युही चलता रहूँगा। 
कभी खुद में सिमटूंगा
कभी टूट के बिखरूँगा
बेनाम सी मंजिल को
यूँही फिरता रहूँगा।
ऑंठो पहर मन के सहर
न कोई फिकर न गम का जिकर
आत्मा को टटोलूंगा
भावनाओ के बोल बस बोलूंगा
 न रुकना है न थकना है
कल्पना के इस यान पर
अनवरत बढ़ता रहना है।
उमंगें जो मनके अंदर हैं
अनदेखी सी जो थिरकन है।
हाँ इनके साज पे डोलूँगा
ख्वाबो के साथ मैं जी लूँगा
हाँ मन ये मेरा पगला है
मदमस्त सी राह पे निकला है
बेमतलब छलांग लगता है
बस अनकहे बोल बताता है
बस यूँही ये उड़ता रहे
बस गिर गिर केे सम्हलता रहे।
ये आवारा सा बादल रहे
बेमौसम बरसता रहे।
             

बुधवार, 11 मार्च 2015

आशा का गीत

निराश नही हूँ मैं
आज के अँधेरे से कल आने वाली रौशनी
मुझे उत्सास देती है हाँ चल रहा हूँ अभी
कच्ची पगडंडियों पर सहमे कदमो से कल पक्की सड़क पर
दौड़ने की आशा लिए हाँ आज तपती धुप में रह लूँगा कुदरत के आछेप सह लूँगा जियूँगा रौब से
ये एहसास लिये कल एक आशियाना होगा
सिर छुपाने को
हाँ अभी मोहताज हूँ
छोटी छोटी खुशियों का हाँ कल में भी खुशियाँ बाटूंगा नही हैं अभी कोई चाहत शोहरत की शौकत की हाँ कल मैं राहत चाहूँगा
बिन रोक टोक बिन खट पट के
फिरूंगा मन का साज लिए।

मेरी कविता

सच्ची  की झूठी ना जाने कैसी हो 
लगती  हो  नादान सी,
हाँ हो थोड़ी अंजान सी
पर मुझको अपनी लगती हो। 
तुम मनचली,अल्हड़,मतवाली सी
थोड़ी पगली हो थोड़ी दीवानी सी। 
तोड़ के सारे बंधन
तुम अच्छी लगती हो बेलगाम सी। 
हया और बेबाकी तुम्हारे गहने है ,
है हर अदा में नयापन 
जो आकर्षित करता है। 
लिख  रहा  हूँ तुम्हे कैसे लिखू
हर शब्द मुझे तुम्हारी ओर खींचता है।
खेल रही हो मेरे हर लफ़्ज़ों से
जाने कैसी शरारत है,
ये फेरे तुम्हारी यादो के
ये तो बस मेरी आफत है।  

दिल की फसल

गेंहू की बालियों में,
चमक रही थी आँखे तेरी 
पक रही थी फसल मेरी चाहत की। 
बोया था एक-एक बीज 
रूहानी जज्बातों से,
सींचा था हर एक क्यारी को 
अंतर्मन की जलधारा से।  
वादियों के  दामन में 
महसूस किया तेरी खुशबू को
जहा हर फूल उपजा था 
दिल के आधारतल से।  
हाँ पाला है हर एक पौधे को 
आत्मीय संवेदना से।  
लाया था मिटटी मै
दिल की गहराइयो से।

आ रही है जिन्दगी

आ रही है जिन्दगी मेरी ओर
नए एहसासों के साथ।

उमंगो की नई पंखुडियो के
खिलने का आधार लिए।

मन के किसी कोने में दबे थे
कुछ सपने मनचली रातो के
इशारा दे रहा है समय
अब उन्हें सजाने का
कल्पना की सुनहरी रंगीन सी
उड़ान भरने जाने का।
शोर कर रही है हवाएँ अब
उड़ना है आसमान में।

निराशा के हर पल को
ढो रहा था सिद्दत से
के कही से तो आएंगी
किरणे आशाओं की।

हाँ हो सकता है ये
भावनाओं का फेर भी
फिर भी उठ तो रहे है
मुस्कुराहट के पंख अनेक
उल्लास की अमरबेल है
विश्वास के सहारे बढती हुई।
ले के सहारा आत्म-
-विश्वास की लताओं का
शिखर की ओर चढ़ती हुई

हाँ ये मौका है कुछ कर गुजरने का
कर्मठता के मानदंड गढ़ने का।

सोमवार, 9 मार्च 2015

अधूरी चाहत

फिर से अधूरी चाहत के
पन्ने पलट रहा हूँ।
कहना चाहता था तुमसे
पर लफ्ज़ ठिठक गए।

ख्वाबो की गहरी नदी में
फिर गोते लगा रहा हूँ
डूबना था तेरी आँखों में
पर आंखे छलक गईं।

झिझकता था मै तुमसे
तुम मुझसे कतराती थी
कह न सका कोई कुछ भी
अनसुनी आहें भरते रह गए।

तुम्हारी एक झलक के लिए
वो भोर में उठ जाना।
गुलाबी ठण्ड में नंगे पांव
छत पर पहुँच जाना।

तुम जब भी नजरें उठाई थी
मै नजरें झुका लेता था।
भावना के उन्माद को
अंतर्मन मै दबा लेता था।

तुम आये हो

पतझड़ के सुर्ख मौसम में फूल क्यों खिल रहे हैं
शायद तुम आये हो।

सूने सूने मन के आंगन में ये खिलखिलाहट कैसी
शायद तुम आये हो।

गुमसुम सी इस सुबह में ये कलरव कैसा
शायद तुम आये हो।

वीरान से इन रास्तो पर ये बहार कैसी
शायद तुम आये हो।

धुल खाते दिल के दर्पण में ये चेहरा कैसे
शायद तुम आये हो।

गर्म फिजाओं के घेरे में ये ताजगी कैसी
शायद तुम आये हो।

निर्वेद की इस बेला में खनखनाहट कैसी
शायद तुम आये हो।

बेजान से इस बुत में धड़कन कैसे
शायद तुम आये हो।

आज फिर चुन रहा हूँ मोती चाहत के
शायद तुम आये हो।

थमी थमी सी इक्षाएँ फिर से जीने लगी हैं
शायद तुम आये हो।

हाँ रुकने को थी सांसें बेमतलब सा था जीवन
आज फिर आधार मिला है
शायद तुम आये हो
शायद तुम आये हो।

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...