मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

उम्मीदों का आसमान

अपनी उम्मीदों एक आसमान सबका होता है। वो उम्मीदें कभी रातों में  ख्वाबों में ढल जाती हैं .... कभी दिन की बेताबी में उतर जातीं हैं।  उम्मीदों के तारे कभी टूट कर गिरते हैं..... तो कभी ओझल हो जाते हैं अमावस्या  के कारण। अनंत होता है उम्मीदों का ये आसमान जिसके छोरो को नापना नापना संभव नहीं होता। इसमें बहुत सी उम्मीदों आकाशीय  पिण्ड बनकर उभरती और उजडती रहती हैं। कुछ उम्मीदें पूरी न होकर बौने ग्रह की तरह,
गतिमान रहती हैं। पूरी होने वाली उम्मीदों चमक जाती हैं ध्रुव तारें की तरह। सब पूरी करना चाहते हैं अपनी उम्मीदें कुछ लोग औरों की उम्मीदें बनते हैं,कुछ उनको पूर्ण करते हैं,कुछ उम्मीदों साझा रहती हैं कई लोगो में।
यहीं हैं जिनपर मानव का संसार कायम है। मानव उम्मीद लगाता भी हैं,उम्मीदें पूरी भी करता है,उम्मीदें तोड़ता भी है। मै अपनी उम्मीदों लेकर चलता हूँ...... तुम अपनी उम्मीदें लेकर चलो.......  और कुछ उम्मीदों हमारी हो जाएँगी एकदिन।

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