सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

अंतर्द्वंद

"खुद से खुद का चल रहा द्वन्द है।
 वर्तमान की भावनात्मक पूर्ति,
और भविष्य की मजबूत  जमीन
के बीच प्रतिद्वंद है।

एक ओर जिंदगी के हर छोटे-छोटे पल को,
खुल के जीने की चाह है, 
दूजी ओर जीवन को,
सफल साबित करने की राह है।

जीवन  का एक पलड़ा,
अब की संस्तुष्टि  की ओर  झुका है,
दूसरा,
आने वाले कल के निर्माण पर टिका है।

छणिक चाह और दूरगामी विश्वास की,
मजधार में,
झूल रहा है मन का शहर।

ढूंढ रहा है हर पहर अब,
राहत की लहर।

 एक ओर आत्म संस्तुष्टि है,
 दूसरी ओर खुद को साबित करने की वृत्ति है.
चिंतनीय के मसला,
सही कौन सी मनोदृष्टि है।


सत् पथ  क्या है,
पड़ाव कौन  सा है,
मन सार्थक है,
या मष्तिष्क,
आत्म सत्य है,
या परार्थ,
कशमकश में है,
हरपल।
मै सही है या हम "



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