बुधवार, 20 मई 2015

सवाल- जवाब

जरा सी सहमी जरा खामोश सी है
रात की अदा ये शोख़ सी है
ये शांति की रचना है, अलबेला साज है
इसका ना अंत है ना ही आगाज है
मै अंजान हु आने वाले पल से
हु बेखबर इसमें सिमटता जा रहा हु
किसकी कमी है?? क्यों अकेला हु???
सारे रास्ते बंद है क्या?? मंजिल किधर है??
ढूंढ़ रहा हु रौशनी टटोल रहा हु बंद आँखों से
कहा है सवेरा?? नाराज क्यों है मुझसे ???
क्या मैंने साहस छोड़ा था???
तब इसने मुह मोड़ा था????
चलो फिर आगाज में करता हु
फिर से आहे भरता हु
अब ना साहस छोडूंगा
कर्तव्य से मुख ना मोडूंगा
थपेड़े सारे सह लूँगा
अब ना हो आगाज रात का
ऐसा अंत मै करूँगा
फिर सवेरा उल्फत करेगा
बाहों में मुझको भरेगा"

क्या मै तुम्हे जानता हूँ


"क्या मै तुम्हे जानता हूँ ?
  रोज तुम्हे सोचता हूँ,
  नई परते खुलती है,
  नया सा तुम्हे पाता हूँ ।
  खुद से सवाल करता हूँ,
  अब क्या तुम्हे मानता हु?
  क्या में तुम्हे जानता हूँ?
  या अब भी अंजान सा हु?
  कितने तुम्हारे रंग है?
  कैसे तुम्हारे ढंग है?
  तुम अच्छी हो या बुरी?
  तुम खोटी हो या खरी?
  क्या वजह दूँ तुम्हारे साथ को?
  कहा जगह दूँ तुम्हारे नाम को?
 अब ये कैसे तय करू?
 कैसे पहचानू तुम्हे?
 कितनी तुम गहरी हो ?
 तुम कहा पर ठहरी हो ?
मै खुद से सवाल करता हूँ।
तुम्हे रोज में पढता हूँ
जाने कितनी उलझी हो
हाँ अभी तुम धुंधली हो"

सोमवार, 11 मई 2015

मदर्स डे


"रोहन आज माँ को लेने वृद्धाश्रम गया है उसके सीनियर अधिकारी आने वाले है मदर्स डे पर उनके घर लंच पर रोहन जा ही रहा था तभी उसकी पत्नी उससे कहती है सुनो साम को ही माँ जी को वापस वृद्धाश्रम छोड़ कर आ जाना कल मेरी कॉलेज फ्रेंड आ रही कल यही रुकेगी माँ जी और वो दोनों एकसाथ यहाँ एडजस्ट नही हो पाएंगी तभी रोहन के सिनियर का फोन आता है की उनकी माँ की अचानक तबियत ख़राब हो गयी वो उनका आना केंसल तभी दोनों गहरी साँस लेते है पत्नी कहती है चलो अब माँ जी को यहाँ लाना नही पड़ेगा 

शनिवार, 9 मई 2015

अनछुए एहसास

वो शख्स है अलबेला से
कई रंगो को लपेटे हुए
कभी मायूसी की वो चादर है
कभी उजला सा वो आँचल है
कभी उसे बदहवास पाया
कभी जाता हुए साज पाया
किसी ने पढ़ा उसकी आँखों को
किसी ने सुना उसको बातो को
बस एक आयाम जो धुंधला था
वो जो अंतर्मन पर फैला था
कभी नदिया सा वाचाल था
कभी सागर सा वो शांत था
वो हरपल मुश्कुराता था
खुल के जज्बात लुटाता था
बस छुपा रखा था उन अश्को को
जो तनहाई में बहाता था
हाँ लोगो का कहना है
बड़ी रंगीन उसकी दुनिया है
ये सबकुछ भ्रम का जाल है
उसके मन के श्वेत पत्र से
हरकोई अंजान है।

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...