मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018

अंतर्द्वंद -1

इच्छाओं का मर जाना।
इच्छाओं का  बढ़ जाना। 
एक शून्य कर जाता है। 
एक अधीर कर जाता है।   
खत्म नहीं होता,
जूझना और चूकना। 
कुछ पाने के लिए,          
या वंचित रह जाने के लिए। 
असफलता कहती हैं,
त्याग दे तू इच्छा कुछ पाने की। 
उत्साह कहता है प्रयास कर, 
यदि लालसा है कुछ कर जाने की। 
रिक्तता और अति 
दोनों बुरी हैं। 
संतुलित रखना है खुद को
दोनों के मध्य।  
यही नीति है।
© अविकाव्य

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...