बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

मन की बात

मैंने असफलताओं को मोतियों की तरह माला में पिरो लिया था । माला का धागा बनाया अपने व्यक्तित्व की कमियों से। देखना था कौन आता है दूर से ही अपने स्वरूप को प्रदर्शित करती इस माला को देखकर।
मैने देखा लोगो का हुजूम आ रहा था। मैं आश्चर्यचकित था फिर देखा सभी के गले ऐसी ही मालाओं से सुसज्जित थे। असफलता ने असफलता को खींच लिया था।
फिर एक रोज मैने सारी सफलताएं पहन लीं मोती बनाकर धागा बनाया अपने गुणों को। मैने फिर देखा लोगो के हुजूम को मेरी ओर आते हुए। इस बार उनकी विशेषताएं मिश्रित थीं। कोई सफलता लपेटकर आया था। कोई असफलता पहनकर भी आ गया था। कोई लगता था लोमड़ी की तरह छल कपट पहने हुए। कोई लगता था लकड़बग्घे की तरह द्वेष ओढ़े हुए।
सफलता सानिध्य भी देगी। किसी की अवसर पूर्ति का साधन भी बनाएगी। किसी के द्वेष का भागी भी बनाएगी। और कायम न रह पाई तो असफ़लता का सहचर भी बनाएगी।
इस कश्मकश में कुछ चेहरे ऐसे भी देखे जिनके गले बिल्कुल कोरे थे। उनकी आंखों मे प्रेम,स्नेह,लगाव जैसे द्रव सिमटे हुए थे। मैं सर्वाधिक लालायित था बस उनसे लिपट जाने को। मेरे अंदर के प्रेम,स्नेह और अपनेपन ने पहचान लिया था अपने सहचरों को।

~ अविनाश कुमार तिवारी

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