शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

साझी दुनिया

 मेरी उलझने तुम सम्हाल लो
 तुम्हारी व्यथाएँ मेरी हो जाएँ।

 धड़कने,साँसे,रुदन,हँसी,
 मेरी और तुम्हारी।
 आओ बंटवारा कर लें,
 इनका भी ऐसे कि,
 मेरा हिस्सा तुम रख लो।
 तुम्हारा भाग मै माँग लूँ।

 फिर सब कुछ,
 न पूरा मेरा होगा,
 न पूरा तुम्हारा होगा।

 परेसानियाँ,चिंताएं,
 संवेदनाएं,आशाएँ।
 जो भी होंगी सब हमारी होंगी।
 फिर बन जाएगी हमारी,
 साझी दुनिया।

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