बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

एक कविता किसी मन से निकले

शब्दधारा किसी हृदय से बह निकले
फिर कई हृदयों को छूकर सींच दे।
एक नदी कहीं से प्रवाहमान हो
कई जलधियों में हलचल कर दे।
एक करुण पुकार कहीं पर गूँजे
कई पत्थरों को कोमल कर दे।
एक फूल कहीं पर खिले
कई कंटको को नर्म कर दे।
एक आराधना कहीं कोई बांचे
कई भवनों को पावन कर दे।
एक कविता किसी मन से निकले
कई कल्पनाओं को अभिव्यक्ति दे।
🌼🍁

【अविनाश कुमार तिवारी 】

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

नई कोंपलें


"कहीं न कहीं पर तो
नई कोंपलें फूटती होंगी
दरख्तों के सूख जाने से
ठीक पहले।"🍁



मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

'पर्वतों से कोई नदी निकली थी'

यहाँ पर्वतों से कोई नदी निकली थी
कहाँ तुम थे और वो कहीं निकली थी।

जो निकल गए कहीं,कल संवारने को
दूर उनसे उनकी सरजमीं निकली थी।

जो थक चुकी थीं दुःख देख देख कर
उन आँखों से सारी नमी निकली थी।

साथ रहकर जब हम दूर हो गए 
हममें बहुत सारी कमी निकली थी।

संजीदगी थी,फिर कुछ याद आया
होंठो पर यूँही इक हँसी निकली थी।

उम्र तय हो गई बहुत लम्बी मगर
कुछ चाहतें अभी नही निकलीं थी।

मैंने चाहा था कि वो गलत हो जाएं
वो गफलतें सारी सही सही निकलीं थीं।

- अविनाश कुमार तिवारी

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

(पीड़ाएँ )
पीड़ाएँ कभी लुप्त नही होतीं
उनकी अनदेखी कर दी जाती है।
*
(वेदनाएँ)
वेदनाएँ कभी मृत नही होतीं
हमारे आँसू संकीर्ण हो जाते हैं।
**
(संभावनाएं)
"वहाँ सब संभव है,
जहाँ सच्चे भाव होते हैं।
जहाँ प्रयत्न सीमित हो,
वहीं आभाव होते हैं।"
***
(निवारण)
"पीड़ाएँ,अभिव्यक्ति से अधिक
निवारण की राह तकतीं हैं।"
****

- अविनाश कुमार तिवारी

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

एक शीशमहल में चिरनिद्रा में।
देख रहा था स्वप्न वो।
सीधी और सुंदर राह में,
पंक्तिबद्ध खड़े वृक्षों को।
हर डाल पर बैठे पंछियों को।
उनके सुनहरे पँखो को।

फिर नींद टूटी,आँख खुली।
हो गया हर दृश्य अगोचर।
फेरी दृष्टि चारो ओर,
हर शीशे में कुछ प्रतिकृतियां थी।
हर ओर फैला था दृश्य विकट।

कहीं आँखों से बरसता पानी था।
कहीं सहमा सा कोई बचपन था।
कहीं रंजो,नफरतों के मेले थे।
कुछ शोषित खड़े अकेले थे।
कहीं गिद्ध सी कुछ आंखे थी।
कहीं असहज सी कई राते थी।
कहीं पाखंड का कारोबार था।
कहीं धर्म का व्यापार था।
कहीं राजनीति खिलखिला रही थी।
कहीं मानवता तन्हा खड़ी थी।"

तभी मोबाइल में किसी का फोन आया
और रिंगटोन बज उठी -
"जहाँ डाल डाल पर सोने की
चिड़िया करती है बसेरा
वो भारत देश है मेरा'

- अविनाश कुमार तिवारी

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...