अब खेत तन्हा हो जाते हैं।
फसल कट जाने के बाद।
अब गायब है
उनमें दौड़ती-खेलती
बच्चो की टोली।
बचती है उनके पास
बस चूहों के पैरो की थाप।
वो पैर अब उनपर नही पड़ते,
जो खरपतवार रौंद कर
उन्हें सपाट बना जाते थे।
शोक करते,
झींगुरों की आवाज तो है।
शोर गायब है,
उनमें खेलते नौनिहालों का।
तन्हाई का ये सिलसिला,
टूट जाता है।
जब बन जाती हैं,
उनमें इमारतें।
और खत्म हो जाता है
अस्तित्व ही खेतो का।
©अविकाव्य
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