कल्पना ही तो थी!
मेरी-तुम्हारी।
जो ढल गई वास्तविकता में
कोई स्वप्न कल्पना....
कोई चेतन कल्पना....
कल्पना ही थी ब्रह्म की,
जो सृष्टि का सृजन हुआ,
कल्पना ही थी मनु की,
जो प्रलय के बाद
नवउत्थान हुआ।
"चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते हैं. बंद आँखों की बातो को,अल्हड़ से इरादों को, कोरे कागज पर उतारेंगे अंतर्मन को थामकर,बाते उसकी जानेंगे चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते है"
तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...
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