कुछ गहरा
कुछ अप्रत्याशित सा
अभी खुद से हु
अंजान जरा।
कभी पोखर सा हु
बंधा हुआ,
कभी सागर सा अथाह हु मैं।
कभी उजला हु सबेरे सा,
कभी अंधला हु अँधेरे सा।
है असीमित इक्षाए भी,
है जज्बा भी अनंत सा,
चाह भी है असंभव की
कोसिस भी है हर सम्भव की।"
"चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते हैं. बंद आँखों की बातो को,अल्हड़ से इरादों को, कोरे कागज पर उतारेंगे अंतर्मन को थामकर,बाते उसकी जानेंगे चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते है"
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