गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

बीते लम्हे

बीते हुए लम्हों की और जब देखता हूँ।
अनगिनत यादो की परते उकेरता हूँ।
कुछ साँचे थे जो भर नही पाए।
कुछ नाते थे जो फल नही पाए।
कुछ रातें याद करके सिसक जाता हूँ।
कुछ बातें याद करके बिखर जाता हूँ।
कुछ लम्हे थे जो चीख छोड़ गए।
कुछ अपने थे जो सीख छोड़ गए।
कुछ सपने थे जो आज भी उथले हुए हैं।
कुछ हालात थे जो आज भी ठहरे हुए हैं।
कुछ घाव थे जो भर गए थे।                       
कुछ घाव थे उभर गए थे।
कुछ मनोभाव है जो आज भी खामोश हैं।
कुछ आभाव है जिनमें आज भी शोर है।
कुछ अरमान थे जिनकी कसक आज भी बाकी है
होंगे वो साकार उनकी ललक आज भी बाकि है।
                                           
                                             

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...