गुरुवार, 2 जून 2022

कवि का सामर्थ्य

कवियों ने तो खोजा था मरुस्थल में नीर
उन्होंने ही ढूंढें थे पत्थरों की भीड़ में फूल।

प्रचंड तूफान में दिखा था उन्हें ही द्वीप
घने अंधेरों में भी वो थे उजालों में मशगूल।

कलम के प्रेम में गाते थे सुख के गीत
वो तब खुश थे,जब था सब कुछ प्रतिकूल।

कहीं छिड़ उठा था निर्वात में भी संगीत
कवियों ने ही तो हटाए थे चुप्पियों के शूल।

कवियों ने बोए हैं आशा के नव बीज
तब जब नही था कुछ भी उनके अनुकूल।

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