मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

अंतर्द्वंद - 2

चरम था व्यथा का
या सब अन्यथा था?
दहन था श्वासों का
या भरम था एहसासों का।
रुदन थी,घुटन थी
या कोई थोथी चुभन थी।
पीड़ा तुम्हारी सच्ची थी
या कोई बात जो कच्ची थी।
पथ में बिखरे काँटे थे
या तिनके आते जाते थे।
सच मे टूटा कोई पहाड़ था
या नादान सा कोई गुबार था।
सच मे ये संताप था
या झूठा कोई प्रलाप था।
सारी रात आँखें बहीं थीं
या पानी के छींटो की नमी थी।
सपनो का महल ढहा था
या छोटा सा कतरा गिरा था।
तय कर लेना ज़ख्म कितना गहरा था।
या कुछ पल को ही घिरा अंधेरा था। 
©अविकाव्य

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