शनिवार, 19 सितंबर 2015

नज्म-2

"जरा वाजिब था,
कुछ गैर जरुरी सा,
अफ़साना ये दिल का फिजूल था.
तेरे रुखसार की आहटे,
सलवटों में सिमट गयी,
कुछ पल को.
चुभती सी आह एक ,
बाकि रह गयी.
अनकही सी बात एक,
बाकि रह गयी.
ना मुकम्मल हुआ,
ना खत्म हुआ.
थम सा गया,
सब एक लम्हे में "

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