शनिवार, 19 सितंबर 2015

नज्म-2

"जरा वाजिब था,
कुछ गैर जरुरी सा,
अफ़साना ये दिल का फिजूल था.
तेरे रुखसार की आहटे,
सलवटों में सिमट गयी,
कुछ पल को.
चुभती सी आह एक ,
बाकि रह गयी.
अनकही सी बात एक,
बाकि रह गयी.
ना मुकम्मल हुआ,
ना खत्म हुआ.
थम सा गया,
सब एक लम्हे में "

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

मेरी कविता

"उत्साहित था,
जब उभरी थी तुम
पहली बार।
सरसराती नजरो से,
तो कभी एकटक देखा तुम्हे,
असीम संतुष्टि संग लिए,
उभरी थी तुम।
मैंने ही गढ़ा था तुम्हे,
मेरे अंतर्मन की ,
आभा थी तुम।
मेरी सिसकियो,
खिलखिलाहट,
मेरी फिसलन,
प्राप्तियों,
सबको तुम आवाज देती हो।
मेरी सच्ची साथी,
मेरी आशा,शांति,
मेरे अंतर्मन की,
परिभाषा हो तुम।"


"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...