रविवार, 7 दिसंबर 2014

इन्सान हूँ मैं

इन्सान हूँ मैं।
कभी मैं लोभी बन जाता हूँ
कुछ चीजे मुझे आकर्षित करती हैं।
कभी क्रोध भी आता है मुझे 
कुछ बातें मुझे अधीर करती है
कभी मैं फरेबी भी हो जाता हूँ
कुछ खोने का डर सताता है मुझे
कई चेहरे हैं मेरे समय समय पर उभरते हैं
परिस्थितियां प्रभावित करती हैं मुझे।
महत्वकांछी भी हूँ मैं खुद को अलग दिखाने की 
कोशिश करता हूँ नजरो का केंद्र बनने के लिए
हाँ मैं गलतिया भी करता हूँ
कुछ बाते विचलित करती हैं मुझे।
रंग भी बदलता हूँ कभी गिरगिट की तरह 
डरता हूँ कुछ बातों के होने से।
शर्मिंदा भी होता हूँ मैं 
हाँ वक़्त लगता है 
गलती का एहसास होने मे।
कभी भावनाओ मैं बह जाता हूँ 
चंचल है मन मेरा डोर तोड़ देता है।
कभी संकोच करता हूँ
कुछ कहने मैं कुछ बाते 
असहज करती हैं मुझे।
इन्सान हूँ मैं।
दया,क्रोध,शर्म,लोभ,काम,
नफरत, प्रेम,अपनत्व,अलगावो 
सभी भावो से चरित हूँ मैं।

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