मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

विविधता में एकता को अंगीकार करने वाला सनातन धर्म

 हम विष्णु जी,ब्रह्मा जी,शिव जी,गणेश जी तथा सूर्य देव को लेकर पंचदेवोपासना की परंपरा का निर्वहन करते हैं। चारों दिशाओं के लिए हमारे देवता हैं :- उत्तर में सोमदेव,दक्षिण में यम देव,पूर्व में इन्द्रदेव और पश्चिम में वरुण देव।

हमारे धाम भारत की चारो दिशाओं में हैं  उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में कांची, पूर्व  में पूरी और पश्चिम में द्वारिका।

अयोध्या,मथुरा,माया(हरि द्वार),काशी,उज्जैन, कांची,द्वारिका आदि हमारे सात मोक्ष दायी स्थान सम्पूर्ण भारत मे विस्तृत हैं।

हमारा धर्म दो मुख्य धाराओं में बंटा है और हम दोनों को साथ लेकर एक सूत्र में पिरोते हैं।

एक वैष्णव धर्म(भागवत सम्प्रदाय) है जो कि पहला सम्प्रदाय जिसने ब्राह्मण धर्म की बुराइयों के प्रति सुधारात्मक रुख दिखाया जिसके पथ प्रदर्शक वासुदेव कृष्ण ही थे।

कृष्ण जिनके मानवीय स्वरूप का प्राचीनतम संदर्भ - छन्दोग्य उपनिषद में मिलता है। फिर पाणिनि अपनी अष्टाध्यायी में सर्वप्रथम भगवान के दैवीय स्वरूप को लिपिबद्ध करते हैं।

इसी से जुड़े हुए 7वी से 9वी शताब्दी के मध्य आलवार संत हुए जो दक्षिण भारत मे भ्रमण करके वैष्णव धर्म का प्रचार करते थे जिनकी सँख्या 12 थी।

ऐतरेय ब्राह्मण है जिसमें में विष्णु सर्वप्रमुख देवता के रूप में वर्णित  होते हैं। वहीं शतपथ ब्राह्मण में आदि नारायण का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है।

दूसरा शैव धर्म है जो अपने अंदर  सात सम्प्रदायों पाशुपत,कापालिक, लिंगायत,कालामुख,कश्मीरी शैव,नाथ तथा शाक्त आदि को समाहित करते हुए चलता है।

इसमें नयनार संत हुए जो यहाँ वहाँ भ्रमण करके भजन गाते हुए शैव धर्म का प्रचार करते थे इनके भक्ति गीतों को देवारम मे संकलित किया गया है।

जब सेल्युकस के साथ मेगस्थनीज भारत आते हैं तबअपने भारत वर्णन में वो कृष्ण को हेराक्लीज और शिव को डायनोसस कहते हुए दोनो ही को वर्णित करते हैं।

हमारी सनातन धारा के अंदर - वैष्णव सम्प्रदाय का विशिष्टाद्वैत वाद है जो रामानुज द्वारा प्रतिस्थापित है। ब्रह्म सम्प्रदाय का द्वैतवाद है जो मध्वाचार्य द्वारा प्रतिस्थापित है। रुद्र सम्प्रदाय का  शुद्धाद्वैत  है जो वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित है। सनक सम्प्रदाय का द्वैताद्वैत  हैं निम्बार्काचार्य द्वारा स्थापित है। शंकराचार्य द्वारा स्थापित अद्वैतवाद है।

इतनी सारी धाराओं,इतनी सारी शाखाओं को एकमेव करके निर्मित होता है वसुधैव कुटुम्बकम के प्रेरणा स्रोत सनातन धर्म का वट वृक्ष।

~ अविनाश कुमार तिवारी

बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

हिंदी के कुछ पूर्ववर्ती साहित्यकारों के प्रति

न नीरज का करुणगान रहा।
न निराला के अब मुखर मुक्तक हैं।
चुप है पंत का प्रकृति चित्रण।
ओझल है महादेवी की कविता सुंदरी।
न दिनकर का सूर्यतेज रहा।
न गुप्त का काव्यओज है।
अज्ञात है बच्चन की काव्यशाला।
न प्रसाद की काव्यवली है।
गुम है टैगोर की साहित्यरंगीनी।
खड़ा है रेणु का लोक चित्रण कोने में।
नही है प्रेमचंद की जमीनी वास्तविकता।
नही हैं अज्ञेय के अंतर्मन को छूते लेख।
न शुक्ल की खरी-खरी आलोचना है।
न बख्सी के प्रश्नपूर्ण निबन्ध हैं।

इस रचना में कई महत्वपूर्ण नाम छूट गए हैं पर जो हैं  उन्हें स्मृति के आधार पर इस लघु लेख में पिरोने का प्रयास किया है। "इस कविता की पहली पंक्ति में नाम है - गोपाल दास नीरज का जिन्होंने विभिन्न भावों से परिपूर्ण काव्य का सृजन किया है इनके कई गीत फिल्मो में गीत के रूप में भी अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं। "कारवाँ गुजर गया ग़ुबार देखते रहे" ये इनका  विख्यात और उत्कृष्टतम गीत  है। हिंदी के कवि सम्मेलनों को लोकप्रिय बनाने में सर्वप्रमुख योगदान किसी का रहा है तो वो हैं गोपाल दास  नीरज । दूसरी पंक्ति में नाम है - सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी का जो छायावाद के चार आधर स्तंभों में सुशोभित होते हैं। हिंदी कविता में मुक्तक काव्यो को स्थापित करने में इनका योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा है। तीसरा नाम है - प्रकृति के सुकुमार के रूप में विख्यात  सुमित्रानंदन पन्त जी का ये भी छायावाद के आधर स्तंभों में से एक हैं। इनके काव्य में प्रकृति का अत्यंत मनोरम चित्रण रहा है। काव्य के साथ साथ इनके दो और योगदान उल्लेखनीय हैं अमिताभ बच्चन जी का नाम अमिताभ इन्होने ने ही रखा था जो आगे चलकर सदी के महानायक हुए। साथ ही साथ हमारे दूरदर्शन का भी भी दूरदर्शन नामकरण इन्होने ने ही किया है। अगला नाम है - महादेवी वर्मा जी इनको कौन नहीं जानता छायावाद की आधार स्तम्भ थी ये भी प्रकृति के विभिन्न भावो का शानदार मानवीकरण इन्होने किया है इनकी वर्षा सुन्दरी इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध कविता रही है। अगला नाम है - रामधारी सिंह दिनकर जी का इनको कौन नही जानता अपनी कृति रश्मिरथी में राधेय कर्ण के जीवन का अतिअनुपम वर्णन इन्होंने  इस अतिलोकप्रिय प्रबंध काव्य में किया है।
अगला नाम है- हमारे राष्ट्रकवि  मैथलीशरण गुप्त जी का ये भी किसी परिचय के मोहताज नहीं अपनी राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत कविताओं से इन्होने हमारे स्वाधीनता संघर्ष को दिशा दी हैं और राष्ट्र कवि के रूप में ख्यात हुए है। इनके द्वारा रचित साकेत महाकाव्य में जिस प्रकार सम्पूर्ण रामायण का काव्य वर्णन है वो उत्कृष्टतम है। अगला नाम है- हरिवंश राय बच्चन जी का इनको कौन नहीं जानता इनकी मधुशाला लोकप्रियता के उस शिखर तक गई है जहाँ तक हिंदी की विरली रचनाएँ हीं गई हैं। फिर नाम आता है - छायावाद के एक और आधार स्तम्भ  जयशंकर प्रसाद जी का जिनके महाकाव्य कामायनी ने इन्हें हिंदी साहित्य का अमिट और अप्रतिम हिस्सा बना दिया।अगला नाम है - गीतांजली के रचनाकार नोबल पुरस्कार धारी  रविन्द्रनाथ टैगोर जी का इनके महाकाव्य गीतांजली ने एक मनुष्य के जीवन के सभी पक्षों को ऐसे अभिव्यक्त किया है जो कि अद्वितीय है। इनके कई उपन्यास व कहानियां साहित्य जगत को इनकी महत्वपूर्ण देन है। इनका रविन्द्र संगीत भी संगीत जगत की अनुपम है। अगला नाम है- फणीश्वर नाथ रेणु जी का इनकी रचना मैला आँचल ने साहित्य जगत में उच्च स्थान प्राप्त किया है। ये अपनी कहानियों में पात्रों कि मनोवैज्ञानिक स्थितियों के शानदार चित्रण ये करते थे। अगला नाम है - मुंशी प्रेमचंद जो की साहित्य एक पूरे युग को अपने साथ लेकर चलते हैं इनके उपन्यास और कहानियां साहित्य जगह के मिल का पत्थर हैं। अपने समय के समाज का अप्रतिम वास्तविक वर्णन इन्होने किया है। इनके लेखकीय स्तर को छूना शायद अन्य साहित्यकारों के लिए असंभव ही है। अगला नाम है महान साहित्यकार और शिक्षक अज्ञेय जी का साहित्य की सभी विधाओ पर समान अधिकार रखने वाले इस लेखक ने तार सप्तक श्रृंखला का प्रकाशन कर हिंदी साहित्य को नया स्थापत्य दिया है। इनका उपन्यास शेखर एक जीवनी साहित्य के नव आगंतुकों के लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा केन्द्र जैसा है। अगला नाम है- साहित्य जगत में निबंधकार और आलोचक के रूप में प्रसिद्ध आचार्य  रामचन्द्र शुक्ल जी का इनको पढ़े बिना हिंदी साहित्य को समझना एक प्रकार से खुद को बेवकूफ बनाना ही है।
अंत में नाम आता है - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी का इनकी मौलिक तथा जमीन से जुड़ी कहानियों व निबंधो को पढ़ना आवश्यक हैं इन्हें सरस्वती पत्रिका के संपादन के लिए भी याद किया जाता है।

©अविकाव्य

शुक्रवार, 13 मार्च 2020

खुला चारागाह

एक खुला चारागाह था वो। 
जानवरो के कूछ झुंड पहले से वहीं थे।
कुछ भोजन की तलाश में आते गए। 
कुछ सिमट कर रह गए। 
कुछ तादाद बढ़ाते गए। 
कुछ वापस चले गए। 
कुछ ने खुद को बदल लिया।
दावा सब कर रहे थे, 
फसलों का,मैदानों का,
जंगलो का,पहाड़ों का,नदियों का। 
खुला चारागाह है वो।
जो किसी की जागीर नही होता। 
जानवरों के सारे झुंड,
संघर्ष करें या सहयोग करें।
उसी चारागाह में रहना है। 
वो लड़ें-झगड़े या मित्रवत रहें।
खेल चलता रहेगा चूहे बिल्ली का।
जो जीतेगा वो भोगेगा।
जो हारेगा वो ताकेगा। 
मौका सबका आएगा।

गहराइयां नापनी हो गर

गहराइयां नापनी हो गर अपनी
तो बना लो तन्हाइयों को अपना।
बन्द आंखों से मत देखो सपना,
भर लो उजालों से घर अपना।
तारे मत गिनो आसमान के,
समेट लो जुगनुओं का कोई जत्था।
राह मत देखो किसी और कि,
रमा लो खुद ही में मन अपना।
उदासियाँ तो लाज़िमी हैं,
रहे उनसे ज्यादा घना ख़ुशियों का गुच्छा।

दिन में तो सब रौशन हैं,
तुम अंधली रातों में भी जलना।
मत डालना किसी पर भार रिश्ते का
राह में जो भी मिले मान लेना उसे ही अपना।
शिकायतें किसी से,फरेब हैं खुद से,
देखो कौन समझता है बिन कहे हाल मन का।
न हो जब कोई देखने वाला,
पूछ लेना खुद से ही हाल अपना।
चुभ जाए गर बात कभी कोई,
बढ़ जाना आगे मन मे मत रखना।

🍁【अविनाश कुमार तिवारी】

सोमवार, 9 मार्च 2020

"अब खेत तन्हा हो जाते हैं"

अब खेत तन्हा हो जाते हैं।
फसल कट जाने के बाद।

अब गायब है 
उनमें दौड़ती-खेलती 
बच्चो की टोली।

बचती है उनके पास
बस चूहों के पैरो की थाप।
वो पैर अब उनपर नही पड़ते,
जो खरपतवार रौंद कर 
उन्हें सपाट बना जाते थे।

शोक करते,
झींगुरों की आवाज तो है।
शोर गायब है,
उनमें खेलते नौनिहालों का।

तन्हाई का ये सिलसिला,
टूट जाता है।
जब बन जाती हैं,
उनमें इमारतें।
और खत्म हो जाता है
अस्तित्व ही खेतो का।

©अविकाव्य

रविवार, 8 मार्च 2020

अंतिम कविता

 
मैं अंतिम कविता तब लिखूंगा!
जब उंगलियों  में लेखनी पकड़ने का 
अंतिम सामर्थ्य  बचा होगा। 

मैं  अंतिम काव्यबन्ध तब बुनूँगा!
जब मस्तिष्क में कल्पना गढ़ने की 
अंतिम क्षमता  बची होगी। 

मेरी अंतिम कविता तब निर्मित होगी!
जब सुख-दुःख ,करुणा -निष्ठुरता,
संयम-क्रोध,प्रेम-घृणा,अलगाव-आकर्षण,
आदि भावों के अस्थि विसर्जन का 
अवसर होगा।
 

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...