सोमवार, 22 मई 2017

तुम्हारे लिए

"विस्तृत हो तुम,
मन के व्योम में,
प्राणवायु की तरह।
उपस्थति हो प्रति-छण,
हृदय स्पंदन में।
लब्धता है तुम्हारी,
मन के हर कोने में।
सृष्टि है तुमसे ही,
इन विचारों की,
हर आवृत्ति में तुम ही हों।
मेरा तो आतिथ्य है बस,
इस ह्रदय में ,
घर ये तुम्हारा है।
अस्त्तिव हैं इसका,
तुम्हारी विद्यमानता से,
और अपूर्ण हैं ये,
तुम्हारी अनुपस्थिति से। "

रविवार, 21 मई 2017

क्षमताओं को उभारना होगा

कुशलताएँ
रह जाती हैं ,
छिपी हुई,
कमियाँ   उजागर हो जाती हैं।
हम भेंट  नहीं  कर पाते छमताओं से ,
हो जाते हैं अभ्यस्त  परिस्थितियों के।
 नैसर्गिकता  रह जाती  हैं अंतर्मुखी,
 बहुमुखी  बनावटों की चादर में।
उभार  भी आया कभी,
तो दब जाता हैं,
आभाव में आत्मविश्वास के।

               "क्षमताओं  को उभारना होगा, 
                 विफलताओं को डिगाना  होगा। 
                 मिलेगी पहचान कुशलता को, 
                 आत्मविश्वास को जगाना होगा।"

शुक्रवार, 19 मई 2017

उड़ना है मुझे


रास्ता

"हम भटकते भी खुद में हैं, 
और सही रास्ता भी हम में ही समाहित हैं।  
किन्तु गलत रास्ते जब जादा उभरकर आ जाते हैं, 
तो बस भटकने का दौर सा चल पड़ता है। "
 ये निर्भर करता है हमारे चुनाव पर,की हमने कौन सा रास्ता चुना हैं। 
उस पाषाण के जैसा, जो अपना रास्ता कभी नहीं बदलता भले ही एक जगह आकर स्थिर क्यों न हो जाए।  
या फिर उस  मोर पंख के जैसा, जो स्वयं को वायु के प्रभाव पर छोड़ देता है।  
या फिर एक उफनती तरुण नदी ही तरह,  जो राह में आने वाली मिटटी को खीँच  ले जाती है,
अपने रास्ते...और बहती जाती है कल-कल।  

मंगलवार, 9 मई 2017

पुरानी डायरी

कविताएँ बिखरी पड़ी हैं यहाँ-वहाँ,जो लिखी थी तुम्हारे लिए।

एक पुराने बैग को खंगाल रहा था तभी एक पन्ना आ गया नजरों के सामने ।

उस दिन जब  तुम्हारी लिपिस्टिक जादा गाढ़ी हो गयी थी न,उसकी  नाराजगी लिखी थी मैंने उस पन्ने में।

अनायास ही मेरे  हाथ टेबल के उस खाँचे की ओर बढ़ चले,जहाँ रखी थी वो पुरानी डायरी, जिसमें उकेरे थे कई इल्जामात तुम पर।

तुम जब जब स्टेपकट बाल कटवा लेती थी न,तो वो बिलकुल जंचता नही था मुझे,गुथे हुए लम्बे बाल ही जमते हैं तुमपे।

जब आई लाइनर लगाकर आई थी न तुम आँखों में, तो न जाने कैसे उनमें ही उतरकर ले आया था शब्द मैं औरसजा दिया था उनको पन्ने में। ..

पहली  मुलाक़ात से लेकर,आखरी लम्हे तक की भावनाएं हैं उसमें शब्दों के रूप में।.......

तुमने ही तो भेंट की थी वो डायरी मुझे और तुम ही तो बसी हो उसमें इश्क स्याही से।...........


  

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...