सार्थकता से दूर
जा रहा है जीवन
दबी सी आवाज में
मुझसे कुछ
कह रहा है जीवन
इन छणिक
मनोभावों की पूर्ति में
लक्ष्य से पीछे
हट रहा है जीवन
क्या मनोइछा
की पूर्ति ही सार्थकता है
नहीं ये तो स्वार्थपरता है
नहीं अब सार्थकता की
और जाना है
जीवन में संयम को
अपनाना है
बस लक्ष्य की ओर
ध्यान लगान है
छोड़ कर सारे
झमेलों को
दुनियाभर के
मेलो को
बिना खिट -पिट
बिना शोर
ख़ामोशी से बढ़ना है
लक्ष्य की ओर
लक्ष्य हो ऐसा की
बनु में इतिहास
फैले नाम
जैसे फैला
ये आकाश
करे लोग मुझपर
विश्वास
मेरे जीवन से हो
संसार को लाभ
हाँ यही लक्ष्य है
यही सत्य है
यही सार्थक है
यही प्रवर्तक है।
जा रहा है जीवन
दबी सी आवाज में
मुझसे कुछ
कह रहा है जीवन
इन छणिक
मनोभावों की पूर्ति में
लक्ष्य से पीछे
हट रहा है जीवन
क्या मनोइछा
की पूर्ति ही सार्थकता है
नहीं ये तो स्वार्थपरता है
नहीं अब सार्थकता की
और जाना है
जीवन में संयम को
अपनाना है
बस लक्ष्य की ओर
ध्यान लगान है
छोड़ कर सारे
झमेलों को
दुनियाभर के
मेलो को
बिना खिट -पिट
बिना शोर
ख़ामोशी से बढ़ना है
लक्ष्य की ओर
लक्ष्य हो ऐसा की
बनु में इतिहास
फैले नाम
जैसे फैला
ये आकाश
करे लोग मुझपर
विश्वास
मेरे जीवन से हो
संसार को लाभ
हाँ यही लक्ष्य है
यही सत्य है
यही सार्थक है
यही प्रवर्तक है।