बहती हो वो हवा सी,
छा जाती हो घटा सी।
सोंधी सी जैसे मिटटी हो,
ओंस में भीगी पत्ती हो।
झरने सी वो निर्झर हो,
हिरणी सी वो चंचल हो।
सात रंगो की छाप हो,
सात सुरों का राग हो।
निशा सी उसकी छाया हो,
चाँद सी उसकी काया हो।
शराब सी वो नशीली हो
अनसुलझी सी पहेली हो।
बाह जाऊँ उसके वेग में
खो जाऊँ उसके तेज में।
बचपन सी नादानी हो,
परियो की वो कहानी हो।
सभी गुणों का उल्लेख हो,
मन से लिखा वो लेख हो।
दसों रसों का स्थाई भाव हो,
बचपन सी नादानी हो,
परियो की वो कहानी हो।
सभी गुणों का उल्लेख हो,
मन से लिखा वो लेख हो।
दसों रसों का स्थाई भाव हो,
महाकाव्य सा प्रभाव हो।
प्रकृति सी वो संपन्न हो,
पाकर उसे मन प्रसन्न हो।
प्रकृति सी वो संपन्न हो,
पाकर उसे मन प्रसन्न हो।
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