बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

हिंदी के कुछ पूर्ववर्ती साहित्यकारों के प्रति

न नीरज का करुणगान रहा।
न निराला के अब मुखर मुक्तक हैं।
चुप है पंत का प्रकृति चित्रण।
ओझल है महादेवी की कविता सुंदरी।
न दिनकर का सूर्यतेज रहा।
न गुप्त का काव्यओज है।
अज्ञात है बच्चन की काव्यशाला।
न प्रसाद की काव्यवली है।
गुम है टैगोर की साहित्यरंगीनी।
खड़ा है रेणु का लोक चित्रण कोने में।
नही है प्रेमचंद की जमीनी वास्तविकता।
नही हैं अज्ञेय के अंतर्मन को छूते लेख।
न शुक्ल की खरी-खरी आलोचना है।
न बख्सी के प्रश्नपूर्ण निबन्ध हैं।

इस रचना में कई महत्वपूर्ण नाम छूट गए हैं पर जो हैं  उन्हें स्मृति के आधार पर इस लघु लेख में पिरोने का प्रयास किया है। "इस कविता की पहली पंक्ति में नाम है - गोपाल दास नीरज का जिन्होंने विभिन्न भावों से परिपूर्ण काव्य का सृजन किया है इनके कई गीत फिल्मो में गीत के रूप में भी अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं। "कारवाँ गुजर गया ग़ुबार देखते रहे" ये इनका  विख्यात और उत्कृष्टतम गीत  है। हिंदी के कवि सम्मेलनों को लोकप्रिय बनाने में सर्वप्रमुख योगदान किसी का रहा है तो वो हैं गोपाल दास  नीरज । दूसरी पंक्ति में नाम है - सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी का जो छायावाद के चार आधर स्तंभों में सुशोभित होते हैं। हिंदी कविता में मुक्तक काव्यो को स्थापित करने में इनका योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा है। तीसरा नाम है - प्रकृति के सुकुमार के रूप में विख्यात  सुमित्रानंदन पन्त जी का ये भी छायावाद के आधर स्तंभों में से एक हैं। इनके काव्य में प्रकृति का अत्यंत मनोरम चित्रण रहा है। काव्य के साथ साथ इनके दो और योगदान उल्लेखनीय हैं अमिताभ बच्चन जी का नाम अमिताभ इन्होने ने ही रखा था जो आगे चलकर सदी के महानायक हुए। साथ ही साथ हमारे दूरदर्शन का भी भी दूरदर्शन नामकरण इन्होने ने ही किया है। अगला नाम है - महादेवी वर्मा जी इनको कौन नहीं जानता छायावाद की आधार स्तम्भ थी ये भी प्रकृति के विभिन्न भावो का शानदार मानवीकरण इन्होने किया है इनकी वर्षा सुन्दरी इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध कविता रही है। अगला नाम है - रामधारी सिंह दिनकर जी का इनको कौन नही जानता अपनी कृति रश्मिरथी में राधेय कर्ण के जीवन का अतिअनुपम वर्णन इन्होंने  इस अतिलोकप्रिय प्रबंध काव्य में किया है।
अगला नाम है- हमारे राष्ट्रकवि  मैथलीशरण गुप्त जी का ये भी किसी परिचय के मोहताज नहीं अपनी राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत कविताओं से इन्होने हमारे स्वाधीनता संघर्ष को दिशा दी हैं और राष्ट्र कवि के रूप में ख्यात हुए है। इनके द्वारा रचित साकेत महाकाव्य में जिस प्रकार सम्पूर्ण रामायण का काव्य वर्णन है वो उत्कृष्टतम है। अगला नाम है- हरिवंश राय बच्चन जी का इनको कौन नहीं जानता इनकी मधुशाला लोकप्रियता के उस शिखर तक गई है जहाँ तक हिंदी की विरली रचनाएँ हीं गई हैं। फिर नाम आता है - छायावाद के एक और आधार स्तम्भ  जयशंकर प्रसाद जी का जिनके महाकाव्य कामायनी ने इन्हें हिंदी साहित्य का अमिट और अप्रतिम हिस्सा बना दिया।अगला नाम है - गीतांजली के रचनाकार नोबल पुरस्कार धारी  रविन्द्रनाथ टैगोर जी का इनके महाकाव्य गीतांजली ने एक मनुष्य के जीवन के सभी पक्षों को ऐसे अभिव्यक्त किया है जो कि अद्वितीय है। इनके कई उपन्यास व कहानियां साहित्य जगत को इनकी महत्वपूर्ण देन है। इनका रविन्द्र संगीत भी संगीत जगत की अनुपम है। अगला नाम है- फणीश्वर नाथ रेणु जी का इनकी रचना मैला आँचल ने साहित्य जगत में उच्च स्थान प्राप्त किया है। ये अपनी कहानियों में पात्रों कि मनोवैज्ञानिक स्थितियों के शानदार चित्रण ये करते थे। अगला नाम है - मुंशी प्रेमचंद जो की साहित्य एक पूरे युग को अपने साथ लेकर चलते हैं इनके उपन्यास और कहानियां साहित्य जगह के मिल का पत्थर हैं। अपने समय के समाज का अप्रतिम वास्तविक वर्णन इन्होने किया है। इनके लेखकीय स्तर को छूना शायद अन्य साहित्यकारों के लिए असंभव ही है। अगला नाम है महान साहित्यकार और शिक्षक अज्ञेय जी का साहित्य की सभी विधाओ पर समान अधिकार रखने वाले इस लेखक ने तार सप्तक श्रृंखला का प्रकाशन कर हिंदी साहित्य को नया स्थापत्य दिया है। इनका उपन्यास शेखर एक जीवनी साहित्य के नव आगंतुकों के लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा केन्द्र जैसा है। अगला नाम है- साहित्य जगत में निबंधकार और आलोचक के रूप में प्रसिद्ध आचार्य  रामचन्द्र शुक्ल जी का इनको पढ़े बिना हिंदी साहित्य को समझना एक प्रकार से खुद को बेवकूफ बनाना ही है।
अंत में नाम आता है - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी का इनकी मौलिक तथा जमीन से जुड़ी कहानियों व निबंधो को पढ़ना आवश्यक हैं इन्हें सरस्वती पत्रिका के संपादन के लिए भी याद किया जाता है।

©अविकाव्य

"नई नस्लों का जीवन धन्य कर दो"

तितलियों में थोड़ी और रंगत भर दो। जुगनुओं में थोड़ी और चमक भर दो। फूलों को ज्यादा खुशबुएँ दे दो। हिमानियों को अधिक सुदृढ़ कर दो। जल धाराओं को अ...